सुजानहित : घनानंद

पद
अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलें तजि आपनपौ झिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं॥
घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक ते दूसरो आँक नहीं।
तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं॥
रावरे रूप की रीति अनूप, नयो नयो लागै ज्यों-ज्यों निहारियै।
त्यों इन आंखिन बानि अनोखी अधानि कहूँ नहिं आन तिहारियै।
एक ही जीव हुतौ सु तौ वार्यौ, सुजना, संकोच और सोच सहारियै।
रोकौ रहै न, दहै घनआनंद बावरी रीझि के हाथन हारियै॥