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रचनात्मक लेखन के विविध रूप

कोई भी रचनात्मक लेख किसी एक निर्धारित स्वरूप में लिखा भी जा सकता है और उसका वाचन भी किया जा सकता है। जब हम कोई समाचार सुनते हैं तो वह किसी रचनात्मक लेखन का ही वाचिक अथवा मौखिक रूप होता है। इसी प्रकार जब हम किसी अखबार को पढ़ते हैं तो वह उसी

ठेले पर हिमालय (यात्रावृतांत) : धर्मवीर भारती

‘ठेले पर हिमालय'—खासा दिलचस्प शीर्षक है न! और यकीन कीजिए, इसे बिलकुल ढूँढना नहीं पड़ा। बैठे-बिठाए मिल गया। अभी कल की बात है, एक पान की दुकान पर मैं अपने एक गुरुजन उपन्यासकार मित्र के साथ खड़ा था कि ठेले पर बर्फ़ की सिलें लादे हुए बर्फ़

अंगद का पाँव (व्यंग्य) : श्रीलाल शुक्ल

वैसे तो मुझे स्टेशन जा कर लोगों को विदा देने का चलन नापसंद है. पर इस बार मुझे स्टेशन जाना पड़ा और मित्रों को विदा देनी पड़ी। इसके कई कारण थे। पहना तो यही कि वे मित्र थे। और, मित्रों के सामने सिद्धांत का प्रश्न उठाना ही बेकार होता है।

ठकुरी बाबा (संस्मरण) : महादेवी

भक्तिन को जब मैंने अपने कल्पवास संबंधी निक्ष्य की सूचना दी तब उसे विश्वास ही न हो सका। प्रतिदिन किस तरह पढ़ाने आऊँगी, कैसे लौदूँगी, तांगेवाला क्या लेगा, मल्लाह क्या लेगा, मल्लाह कितना मांगेगा, आदि-आदि प्रभों की झड़ी लगाकर, उसने मेरी

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रचनात्मक लेखन के विविध रूप

कोई भी रचनात्मक लेख किसी एक निर्धारित स्वरूप में लिखा भी जा सकता है और उसका वाचन भी किया जा सकता है। जब हम कोई समाचार सुनते हैं तो वह किसी रचनात्मक लेखन का ही वाचिक अथवा मौखिक रूप होता है। इसी प्रकार जब हम किसी अखबार को पढ़ते हैं तो वह उसी

ठेले पर हिमालय (यात्रावृतांत) : धर्मवीर भारती

‘ठेले पर हिमालय'—खासा दिलचस्प शीर्षक है न! और यकीन कीजिए, इसे बिलकुल ढूँढना नहीं पड़ा। बैठे-बिठाए मिल गया। अभी कल की बात है, एक पान की दुकान पर मैं अपने एक गुरुजन उपन्यासकार मित्र के साथ खड़ा था कि ठेले पर बर्फ़ की सिलें लादे हुए बर्फ़

अंगद का पाँव (व्यंग्य) : श्रीलाल शुक्ल

वैसे तो मुझे स्टेशन जा कर लोगों को विदा देने का चलन नापसंद है. पर इस बार मुझे स्टेशन जाना पड़ा और मित्रों को विदा देनी पड़ी। इसके कई कारण थे। पहना तो यही कि वे मित्र थे। और, मित्रों के सामने सिद्धांत का प्रश्न उठाना ही बेकार होता है।

ठकुरी बाबा (संस्मरण) : महादेवी

भक्तिन को जब मैंने अपने कल्पवास संबंधी निक्ष्य की सूचना दी तब उसे विश्वास ही न हो सका। प्रतिदिन किस तरह पढ़ाने आऊँगी, कैसे लौदूँगी, तांगेवाला क्या लेगा, मल्लाह क्या लेगा, मल्लाह कितना मांगेगा, आदि-आदि प्रभों की झड़ी लगाकर, उसने मेरी

प्रेमचन्द जी के साथ दो दिन (संस्मरण) : बनारसीदास चतुर्वेदी

"आप आ रहे हैं, बड़ी खुशी हुई। अवश्य आइये। आपने न जाने कितनी बातें करनी हैं। मेरे मकान का पता है - बेनिया-बाग में तालाब के किनारे लाल मकान। किसी इक्केवाले से कहिये, वह आपको वेनिया-पार्क पहुँचा देगा। पार्क में एक तालाब है। जो अब सूख

वसंत आ गया है (निबंध) : हजारीप्रसाद द्विवेदी

जिस स्थान पर बैठकर लिख रहा हूँ, उसके आस-पास कुछ थोड़े-से पेड़ हैं। एक शिरीष हैं, जिस पर लंबी-लंबी सुखी छिमियाँ अभी लटकी हुई हैं। पत्ते कुछ झड़ गए हैं और कुछ झडऩे के रास्ते में हैं। जरा-सी हवा चली नहीं कि अस्थिमालिकावाले उन्मत्त कापालिक

लोभ और प्रीति (निबंध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

किसी प्रकार का सुख या आनंद देने वाली वस्तु के संबंध में मन की ऐसी स्थिति को जिसमें उस वस्तु के अभाव को भावना होते ही प्राप्ति, सान्निध्य या रक्षा की प्रबल इच्छा जग पड़े, लोभ कहते हैं। दूसरे की वस्तु का लोभ करके लोग उसे लेना चाहते हैं, अपनी

रचनात्मक लेखन का अर्थ और महत्त्व

किसी भी कला, गद्य, पद्य या फिर किसी भी वस्तु का मौलिक सृजन रचना कहलाती है। रचनात्मक लेखन किसी भी व्यक्ति द्वारा स्वयं किसी विचार या दर्शन के आधार पर मौलिक रूप से किया गया लेखन, वर्णन या नई रचना का निर्माण है। यह सत्य है कि प्रत्येक रचना

B.A.(Hons) HINDI Syllabus (NEP-2020), Semester-IV, GE

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Previous Year Question Paper, अनुवाद व्यवहार और सिद्धांत, Sem-5

Unique Paper Code62055501 Name of the Paperअनुवाद व्यवहार और सिद्धांतName of the CourseB.A. (Prog.) Hindi - GE SemesterVDuration3 HoursMaximum Marks75 छात्रों के लिए निर्देश: इस प्रश्न-पत्र के मिलते ही ऊपर दिए गए निर्धारित स्थान पर

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