सामाजिक अभियान के प्रचार हेतु सोशल मीडिया विज्ञापन तैयार करना

सोशल मीडिया के कारण सामाजिक जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन आया है। इसके माध्यम से लोग एक दूसरे से आसानी से जुड़ने लगे। अपने विचार शेयर करने लगे। समस्या और उनके समाधान शेयर करने लगे। सूचनाओं का आदान-प्रदान तीव्र गति से होने लगा। लोग आपस में अधिक नजदीक होते गए।
सोशल मीडिया के माध्यम से अनेक तरह की क्रांति, आंदोलन फैलाने में आसानी हुई। सोशल मीडिया मीडिया विचारों के प्रवाह का सशक्त माध्यम बनकर उभरा। सोशल मीडिया के उद्भव से मीडिया का दायरा बढ़ गया है। अब लोगों की आँखें व कान सब जगह पहुँच गये हैं। वे कुछ टेलीविजन चैनलों के कैमरा कर्मचारियों तक ही सीमित नहीं है। सोशल मीडिया एक ऐसा मंच है जो जनता की राय आसानी से बिना छेड़छाड़ कर सीधा जनता को दिखाता है। यह समाज की नब्ज को दिखाता है । यहाँ तक कि पारंपरिक मीडिया भी सोशल मीडिया रुझानों पर लगातार नजर रखते हैं। पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि बहुत सी महत्त्वपूर्ण खबरें सोशल मीडिया से सामने आई। यह खबरें सामाजिक रूप से प्रासंगिक होने के साथ -साथ अति महत्वपूर्ण थी, जिन पर सामाजिक मीडिया ने प्रकाश डाला।
भूमंडलीकरण के कारण उत्पन्न मुक्त बाजार व्यवस्था में सूचनाओं के वैश्वीकरण और तीव्रता की जरूरत को पूरा करने में सोशल मीडिया कारगर तरीके से भूमिका निभा रहा है। सोशल मीडिया मार्केटिंग के इतिहास में 11 नवम्बर, 2014 का दिन काफी हलचल भरा था। चीन की ई-कॉमर्स कंपनी ‘अलीबाबा’ ने अपने ही पिछले साल के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 52,000 करोड़ रुपये का ऑनलाइन कारोबार महज कुछ घंटों में किया यानी एक घंटे में लगभग 12,300 करोड़ रुपये का कारोबार और वह भी 170 देशों में एक साथ। उसी दिन दो भारतीय ऑनलाइन ई-कॉमर्स कंपनियों ‘स्नैपडील ‘ ( Snapdeal) और ‘एमेजॉन इंडिया’ (Amazon India) ने भी रिकार्ड बिक्री की। इससे पहले भी 6 अक्टूबर, 2014 को दो भारतीय कंपनियों फ्लिपकार्ट तथा ‘स्नैपडील ‘ (Snapdeal) ने एक ही दिन में 600, 600 करोड़ रुपये का ऑनलाइन कारोबार कर मीडिया में सुर्खियां बटोरीं थीं।
ये सभी घटनाएं सोशल मीडिया की बदौलत भारतीय बाजार के बदलते स्वरूप के साथ ही उपभोक्ताओं के ऑनलाइन बाजार की तरफ बढ़ते रुझान को भी दर्शाती हैं। यह क्रान्ति अचानक नहीं हुई । इसके लिए उपरोक्त कंपनियों ने उपभोक्ताओं को लुभाने के लिए व्यापक विज्ञापन अभियान चलाया था, जिस पर भारी-भरकम पैसा खर्च किया गया। टेलीविजन व अखबार ही नहीं, बल्कि सोशल मीडिया सहित न्यू मीडिया के सभी माध्यमों का पूरा उपयोग किया गया। परिणामस्वरूप ‘मेगा सेल’ के दिन उमड़ी उपभोक्ताओं की भीड़ को कंपनियां संभाल भी नहीं पायीं और थोड़ी ही देर में उनकी वेबसाइटें ‘क्रैश’ हो गयीं। उपभोक्ताओं की इस भीड़ को जुटाने के लिए भारतीय कंपनियों ने अपने विज्ञापन बजट में चार गुणा बढ़ोतरी की। वर्ष 2013 में उनका विज्ञापन बजट 200 करोड़ रुपये था जो 2014 में बढ़कर 1,000 करोड़ रुपये हो गया।
विज्ञापन का अर्थ व परिभाषा
सोशल मीडिया और विज्ञापन के अंतःसंबंधों को समझने से पहले हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि आखिर विज्ञापन है क्या ? विज्ञापन अंग्रेजी शब्द ‘Advertising’ का हिन्दी रूपातंरण है । ‘एडवरटाइजिंग’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘एडवर्टर’ से हुई है, जिसका अर्थ है ‘टू टर्न टू’ यानी किसी ओर मुड़ना। अर्थात् किसी चीज के प्रति लोगों को मोड़ना या आकर्षित करना | हिन्दी में विज्ञापन का अर्थ किसी विशेष ज्ञान अथवा सूचना देने से है ।
जॉन एस. राइट ने विज्ञापन को परिभाषित करते हुए कहा, ‘विज्ञापन जन सम्प्रेषण माध्यम द्वारा नियंत्रित, पहचान योग्य सूचना प्रदान करने का कार्य करता है।
इसी प्रकार ‘एनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका’ के अनुसार ‘विज्ञापन उत्पादक द्वारा इच्छित भुगतान करके दी गयी वह जानकारी है जो किसी वस्तु अथवा सेवा के विक्रय, प्रोत्साहन, किसी विचार के विकास अथवा कोई अन्य प्रभाव उत्पन्न करने के उद्देश्य से दी गयी हो।
सर विन्सटन चर्चिल ने विज्ञापन का महत्त्व बताते हुए कहा, ‘टकसाल के अतिरिक्त कोई बिना विज्ञापन के मुद्रा उत्पन्न नहीं कर सकता।’
गार्डन के अनुसार, ‘विज्ञापन अत्यधिक उत्पादन के विपणन तथा उत्पादन की गति को बनाये रखने का माध्यम है ।’
गोपाल सरकार कहते हैं, ‘विज्ञापन एक प्रकार से किराये के वाहन द्वारा जनसंप्रेषण है। यह वांछित सूचना को ऐसी दृष्टि उत्पन्न कर फैलाता है ताकि विज्ञापन के अनुकूल क्रियाओं को प्रेरित किया जा सके।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि विज्ञापन से न केवल विक्रयकर्ता को बल्कि उपभोक्ता, समाज एवं राष्ट्र को भी लाभ होता है। इससे रोजगार में भी वृद्धि होती है।
सोशल मीडिया और विज्ञापन
सूचना संचार प्रौद्योगिकी ने संचार जगत में क्रांति ला दी है। कन्वर्जेंस के दौर में सभी माध्यम ऑनलाइन हो गये हैं। कंप्यूटरों के जाल ने विश्व को एक क्लिक तक सीमित कर दिया है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के समूह ने सोशल मीडिया को आधार प्रदान किया। सोशल मीडिया नाम से ज्ञात हो जाता है कि समाज की मीडिया यानी जिसमें विचारों और सूचनाओं का संप्रेषण स्वयं समाज करे। यह लोगों को आपस में जुड़ने व वैचारिक आदान-प्रदान करने का अनूठा माध्यम प्रदान करती हैं । आज विश्व की हजारों किलोमीटर्स में फैली आबादी एक क्लिक से एक दूसरे आमने-सामने आ जाती है । और व्यक्तिगत व सामूहिक दोनों ही प्रकार से अपने विचारों को व्यक्त कर पाती है। आज सूचना ने सभी सीमाएं लांघ कर अपने को विश्व पटल पर सर्वोत्तम स्थान प्रदान करा दिया है। वर्तमान में समाज के छोटे से सोशल मीडिया ने लोगों की दिनचर्या में अपना स्थान बना लिया है, लोग इसे जीवन का अहम हिस्सा मानने लगे हैं उन्हें लोगों से जोड़ कर विश्व स्तर पर पहचान देती है। यह माध्यम आज के युग का सबसे लोकप्रिय माध्यम बनता जा रहा है। वेब जगत में सोशल मीडिया ने अपनी अलग पहचान बना ली है। आज बहुत से लोग सिर्फ सोशल मीडिया से जुड़ने के लिए ही वेब की दुनिया में प्रवेश करते हैं। अब तो ऐसा भी कहा जाने लगा है कि सोशल मीडिया के बिना वेब अधूरा है। सोशल नेटवर्किंग प्रदान करने में फेसबुक, ट्विटर, गूगल प्लस, ऑरकुट, लिंक्ड इन तथा यू-ट्यूब आदि नेटवर्किंग साइट्स मौजूद हैं। शोध अध्ययन में फेसबुक और यू-ट्यूब को इन साइट्स की लोकप्रियता और आवश्यकता के अनुसार चयनित किया गया है।
सामाजिक अभियान और विज्ञापन
सोशल या न्यू मीडिया विज्ञापन को ऑनलाइन अथवा इंटरनेट विज्ञापन भी कहते हैं। किसी उत्पाद अथवा सेवा के बारे में उपभोक्ताओं को जागरुक करने का यह नवीनतम तरीका है, जिसमें मुख्य रूप से इंटरनेट तथा आधुनिक सूचना तकनीक माध्यमों का प्रयोग होता है। इसमें खासतौर से ईमेल मार्केटिंग, सर्च इंजन मार्केटिंग, सोशल मीडिया मार्केटिंग, वेब बैनर एडवरटाइजिंग, डिसप्ले मार्केटिंग, मोबाइल मार्केटिंग आदि शामिल हैं। आपके मोबाइल फोन पर अक्सर ऋण, क्रेडिट कार्ड, प्लॉट, फ्लैट, कार, फोन कनेक्शन आदि से संबंधित फोन व संदेश आते ही होंगे। आपके ई-मेल अकाउंट में भी बहुत सी ऐसी मेल आती होंगीं जो किसी न किसी उत्पाद का प्रचार करने हेतु होती हैं। ‘सोशल’ तथा ‘प्रमोशनल’ मेल के साथ-साथ ‘स्पैम’ बॉक्स में ज्यादातर ईमेल ऐसी ही होती हैं। इन सभी गतिविधियों को वास्तव में ‘एडवरटाइजिंग एफलीएट्स’ ही अंजाम देते हैं।
किसी भी देश की प्रगति और उन्नति में मीडिया का बहुत बड़ा योगदान होता है। यदि कहा जाए कि मीडिया समाज का निर्माण और पुनर्निर्माण करता है तो यह गलत नहीं होगा। इसीलिए मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है। मीडिया का प्रारंभिक रूप मुनादी करवाना तथा लोकनाट्यों द्वारा संदेशों के प्रचार-प्रसार तक सीमित था जो जनसाधारण को जोड़ने का काम करता था विभिन्न जनसमुदाय उन संदेशों की आपस में चर्चा कर उन पर विचार-विमर्श करते थे। आज भी समाज में जनजागरूकता और विचारों की अभिव्यक्ति को नया आयाम देने का पूरा श्रेय सोशल नेटवर्किंग साइट्स को जाता है।
आज इंटरनेट का बढ़ता विस्तार नये किस्म के सामाजिक, राजनैतिक व धार्मिक जनजागरण के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इन जन आंदोलनों ने राष्ट्रीय ही नहीं, विश्व स्तर पर जनता को संगठित कर एकजुट किया है और साथ ही सामाजिक-राजनैतिक प्रश्नों के प्रति जागरूक बनाते हुए बिखरे हुए समाजों में नयी चेतना फूँकने का भी काम किया है।
कैनेडियन दार्शनिक व संचारशास्त्री मार्शल मैकलुहान का कथन है कि – We shape our tools and thereafter our tools shape us… (हम अपने औजार गढ़ते हैं और फिर हमारे औजार हमें गढ़ते हैं) उनके इस कथन को लगातार विकसित होते नये मीडिया के संदर्भ में समझा जा सकता है। संचार और तकनीक का घनिष्ठ संबंध है और निरंतर नया रूप लेती संचार तकनीक के पास समाज को गढ़ने और नया आकार देने की क्षमता होती है, साथ ही वह तकनीक हमारी सोच और संस्कृति को भी प्रभावित करती है।
सोशल मीडिया के सकारात्मक प्रयोगों ने लोगों को अपनी शक्ति का अहसास कराया, साथ ही संवेदनशील मुद्दों को गरमाने और उन्हें उजागर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है । देश की आजादी के लिए हो रहे आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने एक मिशन के रूप में कार्य किया था, परंतु अब पत्रकारिता के स्वरूप में बदलाव आया है। जनचेतना जगाने के लिए पत्रकार जो काम अपनी लेखनी द्वारा करता था, वह काम सोशल मीडिया के विभिन्न ऐप बड़ी आसानी से कर रहे हैं। ये नये माध्यम त्वरित गति से अनेक लोगों को एकसाथ जोड़ लेते हैं । इसकी सबसे क्रांतिकारी शक्ति यही है कि यह सांझी चेतना पैदा करता है। वर्तमान परिदृश्य में सोशल मीडिया की साइट्स जनचेतना का धारदार हथियार बन चुकी हैं।
आज जबकि सोशल मीडिया बहुसंख्यक वर्ग तक अपनी बात पहुँचाने के लिए सशक्त माध्यम बन चुका है, तो ऐसे में इसे जन जागरूकता अभियानों में भी शामिल किया गया है। लोगों को यातायात नियमों के प्रति जागरूक करने के लिए सोशल मीडिया पर ऑनलाइन अपील की जाती है। व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर आदि पर लाल बत्ती की अनदेखी, ओवरस्पीड, युवाओं द्वारा सड़क पर कलाबाजी और शराब पीकर गाड़ी चलाने को लेकर रचनात्मक ऑडियो-वीडियो संदेशों के जरिये यातायात नियम नहीं तोड़ने की अपील की जाती है। इसी तरह जुलाई 2017 में दिल्ली के प्रगति मैदान और मई-जून 2018 में दिल्ली के ही नौरोजी नगर इलाके में नवनिर्माण और विकास के नाम पर काटे जा रहे पेड़ों को बचाने के लिए ‘डिजिटल जंग’ लड़ी गयी। देश के जागरूक एवं पर्यावरण संरक्षक लोगों द्वारा पेड़ों को बचाने के लिए याचिका दायर की गयी। ऑनलाइन मुहिम चलायी गई।समाचारपत्रों में करियर व तरक्की के लिए काम की वेबसाइटों के बारे में भी सूचना दी जाती है जो खासतौर पर युवाओं के लिए जनोपयोगी सिद्ध होती है। इन वेबसाइटों से जहाँ नये घटनाक्रमों का पता चलता है वहीं तकनीक से जुड़ी नवीनतम सूचनाएँ भी मिलती हैं, साथ ही इन वेबसाइटों पर प्रकाशित लेखों से बेहतरीन प्रोफेशनल के तौर पर खुद को स्थापित करने में मदद मिलती है।
इस प्रकार निःसंदेह सोशल मीडिया जहाँ जनजागरूकता और जन आंदोलनों के समय जनमत निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है तो वहीं जरूरतमंदों के लिए सामूहिक अपील कर उनके लिए न्याय के द्वार भी खोलता है। वह आम जन की आवाज को दुनिया की आवाज बना रहा है। गलत नीतियों व गलत विचारधारा का विरोध कर प्रतिरोध का महत्त्वपूर्ण हथियार भी बना है। ऐसे में वह बदलती दुनिया में समाज और लोकतंत्र की नयी परिभाषा भी गढ़ रहा है।
सामाजिक अभियान सम्बंधित विज्ञापन
‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’
“आइए कन्या के जन्म का उत्सव मनाएं। हमें अपनी बेटियों पर बेटों की तरह ही गर्व होना चाहिए। मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि अपनी बेटी के जन्मोत्सव पर आप पांच पेड़ लगाएं।” प्रधान मंत्री ने अपने गोद लिए गांव जयापुर के नागरिकों से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की शुरूआत प्रधान मंत्री ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत, हरियाणा में की थी। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना से पूरे जीवन-काल में शिशु लिंग अनुपात में कमी को रोकने में मदद मिलती है और महिलाओं के सशक्तीकरण से जुड़े मुद्दों का समाधान होता है। यह योजना तीन मंत्रालयों द्वारा कार्यान्वित की जा रही है अर्थात महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन मंत्रालय इस योजना के मुख्य घटकों में शामिल हैं।
लड़कियों की भ्रूण हत्या और उनकी शिक्षा को लेकर सामाजिक अभियान चलाया गया। इसका लक्ष्य लड़कियों की संख्या में वृद्धि व कन्या शिक्षा था। पहले समाज में लड़कियों को बोझ की भाँति समझा जाता था और उनकी शिक्षा की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता था साथ ही गर्भ में जाँच भी कराई जाती थी। फिर सामाजिक अभियान के तहत गर्भ जाँच को अपराध की श्रेणी में रखा गया जिससे भ्रूण जाँच का कार्य बंद हुआ। फिर लड़कियों को शिक्षित करने के लिए बेटी बचाओ-बेटी प पढ़ाओ का नारा दिया गया। सोशल मीडिया के माध्यम से इस अभियान को खूब प्रचार-प्रसार मिला।
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