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सम्प्रेषण: सामान्य परिचय। सम्प्रेषण की अवधारणा

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हिन्दी में अंग्रेजी के ‘कम्युनिकेशन’ शब्द के लिए सम्प्रेषण, संवाद, संचारण और संचार शब्दों का उपयोग / प्रयोग मिलता है। अलग-अलग सन्दर्भ और प्रसंग में लोग इन शब्दों का प्रयोग करते हैं। अंग्रेजी का Communication शब्द लैटिन भाषा की Communicare क्रिया से व्युत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है- “To talk together, confer, dis-course and consult one with another” अथवा सम्प्रेषण की उत्पत्ति लैटिन के शब्द ‘Communis’ से भी मानी जाती है जिसका अर्थ है: सामान्य, साधारण या आम। तात्पर्य है कि जब भी हम किसी के साथ सम्प्रेषण करते हैं तो हमारा प्रयास यह होता है कि सम्प्रेषित किए जा रहे व्यक्ति के साथ सूचना, विचार या भावों की साझेदारी से हमारा कुछ सीमाओं तक तादात्म्य स्थापित हो जाए। संचार शब्द संस्कृत की चर धातु एवं सम् उपसर्ग जोड़कर बना है जिसका अर्थ है चलना घूमना, इधर-उधर भेजना, फैलाना, पहुँचाना आदि।

मानवीय सम्प्रेषण पाँच चरणों से होकर गुजरा है। प्रथम चरण ‘भौखिक सम्प्रेषण’ है, जिसमें मानव ने भाषा का आविष्कार एवं विकास किया। दूसरा चरण “लिखित सम्प्रेषण” है। तीसरा चरण “मुद्रण युग” है जिसमें, मुद्रण युग के प्रारम्भ के रूप में 1454 ई. में गुटेनबर्ग की बाइबल पहली बार छपकर आई। चौथा चरण “दूरसंचार युग” है, जो मोर्स की टेलीग्राफ प्रणाली से प्रारम्भ होकर मारकोनी के वायरलैस से अमरत्व को प्राप्त हो गई। पाँचवा चरण आज का आधुनिक चरण है जिसमें अत्याधुनिक संचार माध्यमों के द्वारा पारस्परिक प्रक्रिया सम्प्रेषण प्रणाली पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। अत्याधुनिक संचार माध्यमों ने पूरे विश्व को एक गाँव में बदलकर रख दिया है।

सम्प्रेषण की परिभाषाएँ:

  1. कीथ डेविस के अनुसार – “सम्प्रेषण एक व्यक्ति से दूसरे तक सूचना और ज्ञान के आदान-प्रदान की प्रक्रिया है। “
  2. डेल्टन ई. मैकफैरलैण्ड –“सम्प्रेषण को विशद् रूप से इस तरह से परिभाषित किया जा सकता है : मानवों के मध्य सार्थक पारस्परिक क्रिया की प्रक्रिया है।”
  3. फ्रेड जी. मेयर –“सम्प्रेषण शब्दों, पत्रों अथवा सन्देशों के माध्यम से परस्पर आदान-प्रदान करना है ।
  4. ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी के अनुसार – ” सम्प्रेषण बोलने, लिखने अथवा प्रतीकों के द्वारा विचारों अथवा ज्ञान को बताना, व्यक्त करना या आदान प्रदान करना है।”

सम्प्रेषण का मनोविज्ञान:

सम्प्रेषण मनोविज्ञान की विचारधारा का विकास द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद हुआ। यह विचारधारा प्रशिक्षण मनोविज्ञान की अधिक समीप है, इसलिए इसे प्रशिक्षण-मनोविज्ञान का ही एक अंग मानते हैं। इसके अन्तर्गत मानव को एक अभियन्त्रण के रूप में समझा जाता है । सम्प्रेषण-मनोविज्ञान (Cybernetic Psychology) का लक्ष्य पृष्ठ-पोषण (Feedback) देना तथा स्वतः नियन्त्रण करना है। यह विचारधारा व्यक्ति को एक पृष्ठपोषण के रूप में (Feedback System) मानती है जो अपनी क्रियाओं को स्वतः उत्पन्न करता है और उनको प्रेरक तथा वातावरण से नियन्त्रित करता है।

इस मनोविज्ञान का सम्बन्ध व्यक्ति के व्यवहार को नियन्त्रित (Control) करने तथा संचालित (Regulate) करने से होता है तथा गति उत्पन्न करना है।

सम्प्रेषण मनोविज्ञान का अर्थ:

सम्प्रेषण मनोविज्ञान को सम्प्रेषण तथा नियन्त्रण ( Communication and Control) का विज्ञान मानते हैं । गुलिबोड (1960) ने इस शब्द का अर्थ यूनानी काईवरनेटिक (Kybernetike) से लिया है जिसका अर्थ होता है, शासन करना । इसे मशीन का सिद्धान्त भी कहते हैं। इसका सम्बन्ध प्रमुख रूप से स्वतः निर्देशन अथवा स्वतः नियमीकरण से है।

स्मिथ तथा स्मिथ (1966) ने प्रयोगात्मक अधिगम मनोविज्ञान का शिक्षण में प्रयोग करने का प्रयास किया था।

डब्ल्यू. वाइनर ने सम्प्रेषण मनोविज्ञान की परिभाषा की है कि वह मशीन एवं जीवों के नियन्त्रण तथा सम्प्रेषण का विज्ञान है।

सम्प्रेषण मनोविज्ञान के सिद्धान्त:

सम्प्रेषण मनोविज्ञान को एक प्रणाली (System) की संज्ञा दी जाती है। सभी प्रणालियों के तीन आधारभूत तत्व अदा, प्रक्रिया तथा प्रदा होते हैं-
(1) अदा – इकाई के अन्तर्गत वह सभी सूचनाएँ तथा सामग्री सम्मिलित की जाती हैं जो प्रणाली की प्रक्रिया में प्रवेश के लिए आवश्यक हैं
(2) प्रक्रिया – इकाई में सूचनाओं तथा सामग्री पर सभी क्रियाएँ इस प्रकार सम्पादित की जाती हैं, जिससे उनमें अपेक्षित सुधार तथा परिवर्तन किया जा सके।
(3) प्रदा – इकाई में प्रक्रिया में परिणामों तथा उपलब्धियों को सम्मिलित किया जाता है जो उस प्रणाली की प्रक्रिया की देन होती हैं।
यह विचारधारा छात्र को भी एक प्रणाली ही मानती है। छात्र के लिए यह तत्त्व इस प्रकार है-
अदा – ज्ञान इन्द्रियाँ, प्रक्रिया – प्रत्यक्षीकरण तथा प्रदा – स्मरण तत्वों को महत्त्व दिया जाता है। प्रणाली को साधारणतः दो भागों में विभाजित करते हैं-
(अ) मुक्तपाश प्रणाली
(ब) आवृतपाश प्रणाली
मुक्तपाश प्रणाली के अन्तर्गत प्रदा वापिस लौट आता है और प्रणाली भावी प्रदा को प्रभावित करता है। आवृतपाश प्रणाली को अकसर सम्प्रेषण प्रणाली कहते हैं। प्रणाली तथा इसके वातावरण में अन्तः प्रक्रिया होती है। आवृतापाश प्रणाली के अन्तर्गत सीमांकन कर दिया जाता है।
जब किसी प्रणाली का प्रदा, अदा के रूप में लौटता है तब वह भावी प्रदा का नियन्त्रण करता है जिसे, पृष्ठपोषण कहा जाता है। इस प्रकार सम्प्रेषण मनोविज्ञान ज्ञानइन्द्रियों से नियन्त्रित पृष्ठपोषण के सिद्धान्तों पर आधारित है जो व्यक्ति की आन्तरिक क्रियाओं द्वारा स्वयं नियन्त्रित होता है।

सम्प्रेषण प्रणाली:

अनुदेशन को भी एक सम्प्रेषण मनोविज्ञान प्रणाली समझा जा सकता है। अनुदेशन प्रणाली के अन्तर्गत भी यह तीनों आधारभूत तत्व निहित होते हैं।
(1) अदा – इस तत्व में छात्रों की विशेषताएँ निष्पत्ति, क्षमताएँ, भाषा को बोधगम्यता, शिक्षक का शिक्षण-कौशल, पाठ्यवस्तु का स्वामित्व तथा उद्देश्यों को सम्मिलित किया जाता है।
(2) प्रदा – इस तत्व में उपलब्ध ज्ञान राशि का परिणाम होता है जो छात्र अपनी अनुक्रियाओं के आलेख से तैयार करते हैं।
(3) प्रक्रिया – इन तत्वों में प्रस्तुतीकरण का नियन्त्रण तथा सुधार किया जाता है। छात्रों की अनुक्रियाएँ पृष्ठपोषण का कार्य करती हैं तथा नवीन ज्ञान प्रदान करती हैं।
अनुदेशन की सम्प्रेषण प्रणाली के अन्तर्गत अदा, प्रदा तथा प्रक्रिया क्रम का अनुसरण किया जाता है। अनुदेशन प्रणाली के अन्तर्गत आवृतपाश प्रणाली को ही महत्त्व दिया जाता है। इसमें प्रदा तत्व, अदा के रूप में लौटकर आता है, और अदा भावी प्रदा को नियन्त्रित करता है। अनुदेशन के एक पद को पढ़कर छात्र अनुक्रिया करता है जिससे वह नवीन ज्ञान सीखता है जिसे प्रदा कहते हैं। अपनी अनुक्रिया की शुद्धता से छात्र को पुनर्बलन मिलता है जिसे पृष्ठपोषण भी कहते हैं। इस प्रकार यह अनुक्रिया (प्रदा) भावी अनुक्रियाओं को प्रेरित करती है। अनुक्रिया की पुष्टि भावी अपेक्षित अनुक्रिया की संभावना बढ़ा देती है। इस प्रकार भावी अनुक्रिया (प्रदा) इस प्रक्रिया से नियन्त्रित होती है। अभिक्रमित अनुदेशन के अन्तर्गत इन्हीं तत्वों का अनुसरण किया जाता है। अदा तथा प्रदा के मध्य अनुदेशन की आव्यूह कार्य करती है। शिक्षक का महत्त्वपूर्ण कार्य यह है कि उसे पृष्ठपोषण की प्रविधियों का क्रमबद्ध रूप में प्रयोग करना चाहिए।

सम्प्रेषण का प्रयोग:

सम्प्रेषण मनोविज्ञान के कुछ सिद्धान्तों तथा प्रत्ययों को शिक्षण-अधिगम के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। आदिकाल से कक्षा शिक्षण में व्यक्तिगत भिन्नता की गम्भीर समस्या रही है। इसके सिद्धान्तों तथा प्रत्ययों के प्रयोग से ऐसे अनुदेशन की रचना की जाती है जिससे सभी पात्रों को अपने ढंग से सीखने का अवसर प्रदान किया जा सकता है। छात्र को अध्ययन के समय लगातार पृष्ठपोषण प्रदान किया जाता है जिससे वह एकाग्रचि होकर अनुक्रियाएँ करता रहे। सम्प्रेषण मनोविज्ञान के आयाम से शिक्षक अधिगम के नियन्त्रण की प्रविधियों (techniques) को समझ सकता है उनका कक्षा-शिक्षण व अनुदेशन (instructions) में प्रयोग कर सकता है तथा शिक्षण के स्वरूपों की व्यवस्था प्रभावशाली ढंग से करने में सफल हो सकता है।
सम्प्रेषण मनोविज्ञान का महत्त्वपूर्ण प्रत्यय पृष्ठपोषण माना जाता है। इसके प्रयोग से छात्रों के अधिगम (learning) का नियन्त्रण तो किया ही जाता है। अपितु छात्र-अध्यापकों में शिक्षण-कौशल का विकास भी किया जा सकता है। सूक्ष्म-शिक्षण तथा अनुकरणीय-शिक्षण की सहायता से पृष्ठपोषण की प्रविधियों (techniques) का प्रयोग करके छात्र-अध्यापकों में अपेक्षित शिक्षण – कौशल का विकास किया जा सकता है। इस प्रकार पृष्ठपोषण की प्रविधियों के प्रयोग से प्रशिक्षण संस्थाएँ प्रभावशाली शिक्षक तैयार कर सकती हैं। पृष्ठपोषण प्रत्यय मानव विकास का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त माना जाता है। इसका प्रयोग समाज, परिवार तथा विद्यालयों में किया जाता है।
अदा, प्रदा तथा प्रक्रिया के सिद्धान्त शिक्षण की क्रियाओं का वैज्ञानिक ढंग से विश्लेषण करने की क्षमता का विकास करते हैं। कक्षा शिक्षण तथा अनुदेशन (instructions) विद्यालय के कार्यक्रमों की गतिशील प्रक्रिया मानी जाती है। शिक्षण क्रिया को अनेक घटक प्रभावित करते हैं। अतः शिक्षक को अपने अनुदेशन तथा शिक्षण-परिस्थिति की व्यवस्था में समस्त महत्त्वपूर्ण घटकों को ध्यान में रखना चाहिए। यह सिद्धान्त भी सम्प्रेषण मनोविज्ञान की ही देन है इसे जुड़ाव का सिद्धान्त कहते हैं । इसके आधार पर शिक्षण प्रतिमानों का निर्माण भी किया जा सकता है।

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