सप्रसंग व्याख्या, रामचन्द्रिका: केशवदास

किछौं यह राजपुत्री वरही बरी है, …….. हर हरि श्री हौ सिवा …….. चाहत फिरत हौ।
संदर्भ- प्रस्तुत पद भक्तिकाल के कवि केशवदास द्वारा रचित एक प्रसिद्ध महाकाव्य ‘रामचंद्रिका’ से लिया गया है। यह पद ‘रामचंद्रिका’ के एक भाग वनगमन भाग का है।
प्रसंग- इस पद में कवि केशवदास कहते हैं कि जब राम भगवान माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन में जाते हैं तो लोग माता सीता को देखकर संदेह प्रकट करते हैं। उन्हें कभी यह संदेह होता है कि कहीं ये दोनों पुरुष माता सीता को जबरदस्ती तो विवाह कर के नहीं ले आये हैं। ऐसे अनेक संदेह जनक बाते कहते हैं।
व्याख्या- प्रस्तुत पद में कवि केशवदास बताते हैं कि जब भगवान राम, सीता और लक्ष्मण के साथ वन को जाते हैं तो रास्ते में अनेक लोग मिलते हैं, लोग माता सीता को देखकर पूछते हैं कि या तो तुमने इस राजपुत्री को जबरदस्ती विवाह करके लाये होगे या इसके ही माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध केवल अपनी इच्छा से आये हो इसलिए डर कर वन-वन छिपे रहते हो।
केशवदास कहते हैं कि या तो तुम तीनों ‘रति, काम और संसार’ विजयी होने का सुयश रूप हो और शिव से बैर करके एकान्तवास करने जा रहे हैं या फिर किसी मुनि द्वारा शापित हो या किसी ब्राह्मण का कुछ दोष करने में मन लगाये हो। या सिद्ध प्राप्त कोई परम विरागी सिद्ध पुरुष हो या तुम दोनों विष्णु और शिव हो। जिनके साथ माता सीता है।