मॉडल प्रश्न उत्तर, हिन्दी कविता सेमेस्टर-2, इकाई-4, भूषण

निम्नलिखित मॉडल प्रश्नोत्तर बी.ए.(ऑनर्स) हिन्दी के सेमेस्टर-2 के पेपर हिन्दी कविता: सगुण भक्तिकाव्य एवं रीतिकालीन काव्य के हैं।
इकाई-4: भूषण
प्रश्न-1. महाकवि भूषण की काव्य-विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- भूषण रीतिकाल के प्रमुख कवियों में से एक है। उनके काव्य की मुख्य विशेषता यह है कि उसमें कल्पना और पुराण की तुलना में इतिहास की सहायता अधिक ली गई है। काव्य का आधार ऐतिहासिक है। इसके अतिरिक्त, इस वीरकाव्य में देश की संस्कृति व गौरव का गान है। भूषण ने अपने वीरकाव्य में औरंगजेब के प्रति आक्रोश सर्वत्र व्यक्त किया है।
काव्य विशेषताएँ
महाकवि भूषण का सम्पूर्ण काव्य वीर-रस से ओत-प्रोत है उनके काव्य की निम्नांकित विशेषताएँ उल्लेखनीय है।
(अ) भावपक्षीय विशेषताएँ
1. वीर रस- वीर रस के कवियों में भूषण का नाम अग्रण्य है। उन्होंने महाराज छत्रसाल और शिवाजी की वीरता का अनेक प्रकार से वर्णन किया है। शिवाजी की चतुरंगिणी सेना (पैदल, घुड़सवार, हाथी-सवार तथा रथ-सवार) के प्रस्थान और रणकौशल के वर्णन में भूषण को बहुत सफलता मिली है-
“सजि चतुरंग सैन अंग मै उमंग धारि
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं।”
शत्रु पक्ष की व्याकुलता, दीनता और खीझ का भी महाकवि भूषण ने अत्यंत हृदयस्पर्शी चित्रण किया है। औरंगजेब के अत्याचार भी उनकी दृष्टि से छिपे नहीं रहे। शिवाजी के साथ-साथ उन्होंने छत्रशाल की तलवार का भी सशक्त रूप में वर्णन किया है-
“भुज भुजगेस की वै संगिनी भुजंगिनी-सी,
खेदि खेदि खाती दीह दारुन दलन के।”
इस प्रकार की साहसपूर्ण यश-गाथाओं के आधार पर भूषण ने भारतीय संस्कृति की रक्षा की प्रेरणा दी है और हिन्दू धर्म को प्रतिस्थापित किया है। वास्तव में वीर रस की दृष्टि से महाकवि भूषण का काव्य सर्वश्रेष्ठ है।
2. राष्ट्रीय भावना- महाकवि भूषण का काव्य राष्ट्रीय भावना पर आधारित है। कुछ आलोचकों ने उन पर साम्प्रदायिक होने का आरोप लगाया है। ऐसे लोगों का मत है कि भूषण कि भूषण ने साम्प्रदायिकता के वशीभूत होकर हिन्दुत्व की रक्षा और हिन्दू संस्कृति के चित्रण में ही अपने काव्य की इतिक्षी की है। लेकिन ये आलोचक यह भूल जाते हैं कि उस समय क्रूर मुगल सम्राट औरंगजेब हिन्दुओं पर घोर अत्याचार कर रहा था अनेक हिन्दुओं को मुसलमान बनाया जा रहा था और उनके मन्दिर नष्ट किए जा रहे थे। ऐसे समय में यदि भूषण का उद्देश्य शिवाजी की वीरता का वर्णन कर भारतीय धर्म और संस्कृति की रक्षा करना था तो वह निःसंदेह उचित ही था। भूषण ने अत्याचारियों के नाश हेतु शिवाजी को प्रत्येक दृष्टि से उत्साहित एवं प्रेरित किया है। इसलिए ये उनकी प्रशंसा करते हुए कहते हैं-
“वेद राखे विदित पुरान राखे सारयुत,
राम नाम राख्यो अति रसना सुधर मै।”
3. सजीव युद्ध वर्णन- महाकवि भूषण ने शिवाजी की सेना के प्रस्थान, चतुरंगिणी सेना के कौशल और युद्धों के सजीव चित्र अंकित किए हैं। इसका कारण यह है कि भूषण ने युद्धों को बहुत निकटता से देखा था। यद्यपि इन वर्णनों में अतिशयोक्ति का पुट है, तथापि का कौशल दर्शनीय है। सेना के प्रस्थान का यह वर्णन देखिए-
“ऐल फैल खैल भैल खलक में गैलगैल,
गजन की हैलपैल सैल उलसत है।
तारा सो तरनि धूरि धारा में लगत जिमि,
धारा पर पारा पारावार यों हलत हैं।।”
इसी प्रकार युद्ध का वर्णन करते हुए भूषण लिखते हैं-
“बाने फहराने घटराने घण्टा गजन के,
नाहीं ठहराने रावराने देसदेस के।”
4. युग का प्रतिनिधित्व- महाकवि भूषण ने अपने युग के संघर्ष का प्रभावशाली चित्रण किया है। औरंगजेब के अत्याचारों का वर्णन करते हुए इन्होंने भारतीय राजपूतों के आपसीह वैमनस्य की ओर भी संकेत किया है-
“आपस की फूट ही तै सारे हिन्दुआन टूटै।”
भूषण ने विदेशी शक्तियों से सिर उठाने और शिवाजी द्वारा उनको आतंकित करने का वर्णन किया है-
“तेरी धाक ही तें नित हवसी फिरंगी और,
विलाइती विलंदे करैं वारिधि विहरनो।”
इस प्रकार भूषण ने रीतिकाल में भी ओजपूर्ण काव्य का प्रभावशाली प्रतिनिधित्व किया है।
(ब) कलापक्षीय विशेषताएँ
1. भाषा- भूषण ने ब्रजभाषा में काव्य-रचना की है, जिसमें अरबी, फारसी, प्रात, बुन्देली और खड़ी बोली आदि के शब्दों के भी प्रयोग किए गए हैं। इनकी भाषा में ओज गुण सर्वत्र विद्यमान है तथा कहीं-कहीं शब्दों को इच्छानुसार तोड़ा मरोड़ा भी गया है। इनके काव्य में मुहावरों और लोकोक्तियों के सुन्दर प्रयोग भी देखने को मिलते हैं।
2. शैली- महाकवि भूषण के काव्य में ओजपूर्ण वर्णन शैली मिलती है, जिसमें ध्वन्यात्मकता एवं चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है।
“रैयाराव चंपति के छत्रसाल महाराज
भृषन सकै करि बखान को बलन कै
पच्छी पर छीने ऐसे परे पर छीने बीर
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।”
5. छन्द- भूषण ने कवित्त, सवैया, दोहा और छप्पय आदि छंदों को अपने काव्य का आधार बनाया है।
6. अलंकार- भूषण ने अनेक अलंकारों का सुन्दर प्रयोग किया है। इस दृष्टि से अनुप्रास, यमक, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा एवं अतिशयोक्ति आदि अलंकार प्रमुख है। यमक अलंकार का एक उदाहरण द्रष्टव्य है-
“ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहनवारी,
ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहाती है।”