भाषा की संरचना एवं विशेषताएं

प्र. भाषा की संरचना को बताते हुए उसकी विशेषताओं को उद्घाटित कीजिए।
उ. एक व्यक्ति से लेकर विश्व मानव की समष्टि को स्वयं में समाहित करने वाली भाषा एक इकाई के रूप में जानी जाती है। भाषा के निर्माण की प्रक्रिया को ही भाषा की संरचना कहा जाता है। भाषायी संरचना के विवेचन के दौरान उन अवयवी का अध्ययन किया जाता है जोकि भाषा के निर्माण में आवश्यक प्रतीत होते हैं। भाषा निर्माण में ध्वनि, शब्द, पद, वाक्य, प्रोक्ति और अर्थ की स्वत्रंत भूमिका होती है।
ध्वनि को परिभाषित करते हुए कहा जाता है कि इसके अंतर्गत मानव के मुखांगों से निकली ध्वनियों का अध्ययन ध्वनि संरचना के अंतर्गत किया जाता है। यह भाषा की लघुतम, स्वतंत्र व महत्त्वपूर्ण इकाई है। इसके अंतर्गत स्वर, व्यंजन, संधि, उपसर्ग, प्रत्यय व समास इत्यादि का अध्ययन किया जाता है।
ध्वनि संरचना के अतिरिक्त भाषा की स्वतंत्र पूर्ण सार्थक सहज इकाई वाक्य का भी अध्ययन इसके अंतर्गत किया जाता है। वाक्य की संरचनात्मक विशेषता है कि इसमें क्रिया का परोक्ष और प्रत्यक्ष रूप में प्रयोग किया जाता आवश्यक है।
भाषा की महत्तम इकाई के रूप में प्रोक्ति संरचना को जाना जाता है। प्रोक्ति भाषा की लघुतम इकाई न होकर इसमें महत्तम व पूर्णाभिव्यक्ति सबसे अधिक मिलती है।
भाषायी संरचना के अतिरिक्त भाषायी विशेषता की बात की जाए तो मनुष्यों की भाषा में कई ऐसी विशेषताएँ पायी जाती है जोकि मानव से इतर अन्य जीवों जैसे पशु-पक्षी इत्यादि में नहीं पायी जाताी है। मनुष्य की भाषा अद्वितीय विशेषताओं से युक्त है जो अन्य जीवों में अप्राप्य है।
मनुष्य की भाषा की महनीय विशेषता यह है कि इसमें द्वैतता पायी जाताी है। मानुषिक भाषाओं में स्वनिम और रूपिम की अवधारणा दिखलायी पड़ती है। सार्थक ध्वनि अंशों को स्वनिम कहा जाता है तो वहीं सार्थक अंशों को भाषा वैज्ञानिकों ने रूपिम की रूप की संज्ञा दी है। यह भाषा की ध्वनियों की ठीक-ठाक ज्ञान कराता है। साथ ही यह उसके उच्चारण की भी शिक्षा देता है।
मनुष्य द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली भाषा में नवीन शब्दों के साथ-साथ नवीन वाक्यों की रचना भी संभव नहीं है। मानवीय भाषा में ही यह सामर्थ्य दिखलायी पड़ता है कि ऐसे शब्द, वाक्यों की रचना भी संभव हे जिसके पूर्व उसका प्रयोग नहीं किया गया होगा। नवीन होने के बावजूद भी श्रोता उसका उच्चारण व अर्थ समझ सकता है।
भाषा को बोलने के दौरान उसके किसी अवयव जैसे कि संज्ञा, क्रिया, विशेषण इत्यादि का स्थान रूढ़ नहीं है। इसके अवयव किसी निश्चित स्थान से ही संबंध नहीं रखते है बल्कि शब्दों के अर्थ संकेत जन्य होते हैं और स्वेच्छा से रचे गए हैं।
यादृच्छिकता का ही परिणाम है कि वक्ता और श्रोता के मध्य की भूमिका में परिवर्तन होता रहता है। संप्रेषण की प्रक्रिया पूरी करने के दौरान वक्ता तथा श्रोता की भूमिका में परस्पर परिवर्तन आता रहता है। आदान-प्रदान की इस प्रक्रिया में परिवर्तन क्षमता विद्यमान रहती है।
मनुष्य भाषा का प्रयोग सभी भावों-अभावों तथा मूर्त-अमूर्त अर्थों की अभिव्यक्ति करने लगा। मनुष्यों द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली भाषा मात्र विद्यमान वस्तुओं का अध्ययन या बोध नहीं कराती बल्कि अविद्यमान वस्तुओं का भी बोध कराती है।
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि भाषायी संरचना में ध्वनि संरचना, वाक्स संरचना व प्रोक्ति संरचना का विस्तृत अध्ययन किया जाता है। भाषायी विशेषता के संदर्भ में देखे तो द्वैतता, नवीन शब्दों का प्रयोग, स्थान का निश्चित न होना यादृच्छिकता का होना तथा मूर्त-अमूर्त की अभिव्यक्ति इसकी महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं।