बिहारी दोहे संख्या: 1, 10, 13, 32

(1)
मेरी भाव बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ।
जा तन की झाँई परै स्यामु हरित-दुति होई।।1।।
(10)
फिरि फिरि चितु उत हीं रहतु,, टुटी लाज की लाव।
अंग-अंग-छबि-झौर मैं भयौ भौंर की नाव।।10।।
(13)
जोग-जुगति सिखए सबै मनौ महामुनि मैन।
चाहत पिय-अद्वैतता काननु सेवत नैन।।13।।
(32)
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत,खिलत, लजियात।
भरे भौन में करत हैं, नैननु हीं सौं बात।।32।।