हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।

घनानन्द के पद, हिन्दी-‘ग’

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पद

अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलें तजि आपनपी झिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं॥
घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक ते दूसरो आँक नहीं।
तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं।।

रावरे रूप की रीति अनूप, नयो नयो लागे ज्यों-ज्यों निहारियै।
त्यों इन आंखिन बानि अनोखी अधानि कहूँ नहिं आन तिहारियै।।
एक ही जीव हुतौ सु तौ वार्यौ, सुजना, संकोच और सोच सहारियै।
रोकौ रहै न, वह घनआनंद बावरी रीझि के हाथन हारियै॥

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