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अभी न होगा मेरा अन्त : सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” Abhi na hoga mera ant

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महाप्राण निराला कृत अभी न होगा मेरा अंत (Abhi na hoga mera ant) एक बेहद ही प्रेरणादायक कविता है, जिसमें निराला जीवन के प्रति उत्साह दिखाते हुए कहते हैं कि अभी उनका अंत नहीं होगा क्योंकि अभी ही तो उनके जीवन में उमंग और उल्लास से भरा वसंत आया है जिसके रंगों में वह सराबोर हैं और जीवन को जीने की इच्छा उनके अंदर ऑउन्ह जागृत हओ चुकी है।

अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त

हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!

मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर

पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,

द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
है मेरे वे जहाँ अनन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त।

मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,
इसमें कहाँ मृत्यु?
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन,

मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बन्धु, दिगन्त;
अभी न होगा मेरा अन्त।

यह कविता (Abhi na hoga mera ant) दिल्ली विश्वविद्यालय के बी.ए. प्रोग्राम के सातवें सेमेस्टर (चौथे वर्ष) में लागि हुई है। रचनाकार केंद्रित अध्ययन के अंतर्गत सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की यह अद्भुत कविता विद्यार्थियों को पढ़ाई जाएगी।

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