Vinay Patrika (विनय पत्रिका) : तुलसीदास

प्रस्तुत पद राम भक्ति धार के श्रेष्ठतम एवं भक्तिकाल के पुरोधा कवि तुलसीदास द्वारा रचित हैं। निम्नलिखित पद उनके द्वारा रचित विनयपत्रिका (Vinay Patrika) ग्रंथ से लिए गए हैं जो कि राम काव्य परंपरा की श्रेष्ठ रचनाओं में से एक है।
पद-45
श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं।
नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर-कंज, पद कंजारुणं ॥ १ ॥
कंदर्प अगणित अमित छवि, नवनिल नीरद सुंदरं।
पट पीत मान्छु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ॥ २ ॥
भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्य-वंश निकंदनं।
रघुनंद आनंदकंद कोशलचंद दशरथ नंदनं ॥ ३ ॥
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणं।
आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खरदूषणं ॥ ४ ॥
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं।
मम हृदय कंज निवास करु कामादि खल-दल-गंजनं ॥ ५ ॥ (राग रामकली)
पद–156
कलि नाम कामतरु रामको ।
दलनिहार दारिद दुकाल दुख, दोष घोर घन घामको ॥ १ ॥
नाम लेत दाहिनो होत मन, बाम विधाता वामको ।
कहत मुनीस महेस महातम, उलटे सूधे नामको ॥ २ ॥
भलो लोक-परलोक तासु जाके बल ललित-ललामको ।
तुलसी जग जानियत नामते सोच न कूच मुकामको ॥ ३ ॥
पद–168
जो पै राम-चरन-रति होती।
तौ कत त्रिबिध सूल निसिबासर सहते बिपति निसोती ॥ १ ॥
जो संतोष-सुधा निसिबासर सपनेहुँ कबहुकँ पावै।
तौ कत बिषय बिलोकि झूठ जल मन-कुरंग ज्यों धावै ॥ २ ॥
जो श्रीपति-महिमा बिचारि उर भजते भाव बढ़ाए।
तौ कत द्वार-द्वार कूकर ज्यों फिरते पेट खलाए ॥ ३ ॥
जे लोलुप भये दास आसके ते सबहीके चेरे।
प्रभु-बिस्वास आस जीती जिन्ह, ते सेवक हरि केरे ॥ ४ ॥
नहिं एकौ आचरन भजनको, बिनय करत हौं ताते।
कीजै कृपा दासतुलसी पर, नाथ नामके नाते ॥ ५ ॥
Vinay Patrika (विनय पत्रिका) : तुलसीदास