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कबीर के दोहे- बी.ए. प्रोग्राम हिन्दी-‘ग’

दोहे भली भई जु गुर मिल्या, नहीं तर होती हाणि। दीपक दिष्टि पतंग ज़्यूं, पड़ता पूरी जाणि।।19।। माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि इवैं पंडत। कहै कबीर गुर ग्यान थैं, एक आध उबरंत।।20।। सतगुर बपुरा क्या करै, जे सिपाही माहै चूक। भावै त्यूं

सप्रसंग व्याख्या, सुंदरकांड: तुलसीदास

2.  तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुन्दर।चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष विषाद हृदयै अकुलानी।।जीति को सकङ् अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई।।सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना।।रामचन्द्र गुन बरने लागा। सनतहिं सीता

सप्रसंग व्याख्या, सुंदरकांड: तुलसीदास

1.  प्रबिसि नगर कीजै सब काजा।हृदय राखि कोसलपुर राजा।।गरल सुधा रिपु करहिं मिताई।गोपद सिंधु अनल सितलाई।।गरुड़ सुमेरू रेनु समताही। राम कृपा करि चितवा बाही।।अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना।।मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा।देख जहँ

मॉडल प्रश्न उत्तर, हिन्दी कविता सेमेस्टर-2, इकाई-1

निम्नलिखित मॉडल प्रश्नोत्तर बी.ए.(ऑनर्स) हिन्दी के सेमेस्टर-2 के पेपर हिन्दी कविता: सगुण भक्तिकाव्य एवं रीतिकालीन काव्य के हैं। इकाई-1: गोस्वामी तुलसीदास: रामचरित मानस (सुंदरकांड) प्रश्न-2. 'सुंदरकांड के आधार पर गोस्वामी तुलसीदास के