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saprasang vyakhya ghananand ke pad

सुजानहित : घनानंद

पद अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं। तहाँ साँचे चलें तजि आपनपौ झिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं॥ घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक ते दूसरो आँक नहीं। तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं॥ रावरे रूप की

सप्रसंग व्याख्या, घनानन्द

संकेत- रावरे रूप की रीति अनूप .......................... बावरी रीझ की हाथनि हारियौ। संदर्भ- प्रस्तुत पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिमुक्त कवि घनानंद द्वारा रचित सुजानहित से संकलित किया गया है। प्रसंग- इस पद में कवि घनानंद ने