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nar ho na nirash

कविता : नर हो, न निराश करो-मैथिलीशरण गुप्त

कुछ काम करो, कुछ काम करोजग में रह कर कुछ नाम करोयह जन्म हुआ किस अर्थ अहोसमझो जिसमें यह व्यर्थ न होकुछ तो उपयुक्त करो तन कोनर हो, न निराश करो मन कोसंभलो कि सुयोग न जाय चलाकब व्यर्थ हुआ सदुपाय भलासमझो जग को न निरा सपनापथ आप प्रशस्त करो