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सुजानहित : घनानंद

पद अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं। तहाँ साँचे चलें तजि आपनपौ झिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं॥ घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक ते दूसरो आँक नहीं। तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं॥ रावरे रूप की

Solved Question Answers, घनानन्द

प्रश्न-1: घनानंद प्रेम की पीर के कवि है, इस कथन के आधार पर घनानन्द का काव्य सौंदर्य स्थापित कीजिए। उत्तर- घनानंद रीतिकाल के सर्वाधिक मार्मिक कवियों में से है। वे प्रेमानिरूपण के ही केवल कवि नहीं है। वरन् वे स्वयं नेही महा है। प्रेम ही