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मेले का ऊँट (निबंध) : बालमुकुंद गुप्त

भारत मित्र संपादक! जीते रही, दूध बताशे पीते रही । भांग भेजी सो अच्छी थी । फिर वैसी ही भेजना । गत सप्ताह अपना चिट्‌ठा आपके पत्र (भारत मित्र) में टटोलते हुए 'मोहन मेले' के लेख पर निगाह पड़ी । पढ़कर आपकी दृष्टि पर अफसोस हुआ । भाई, आपकी दृष्टि