Kar Kamal Ho Gaye कर कमल हो गए : हरिशंकर परसाई
'कर कमल हो गए' (kar kamal ho gaye by harishankar parsai) हिन्दी साहित्य के मशहूर व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित एक व्यंग्यात्मक निबंध है जिसका पाठ नीचे दिया गया है।
पिछले महीने से अपने हाथ भी कमल हो गये हैं। मेरे पास तीन कॉलिजों!-->!-->!-->…