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kabir ke dohe saprasang vyakhya

कबीर के दोहे- बी.ए. प्रोग्राम हिन्दी-‘ग’

दोहे भली भई जु गुर मिल्या, नहीं तर होती हाणि। दीपक दिष्टि पतंग ज़्यूं, पड़ता पूरी जाणि।।19।। माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि इवैं पंडत। कहै कबीर गुर ग्यान थैं, एक आध उबरंत।।20।। सतगुर बपुरा क्या करै, जे सिपाही माहै चूक। भावै त्यूं

Kabir ke Dohe कबीर के दोहे हिन्दी-‘ग’

कबीर के दोहे (kabir ke dohe) गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय॥ निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय॥ कबिरा संगत साधु की ज्यों गंधी का बास। जो कछु

कबीर के दोहे हिन्दी-‘क'(B.Com.)

निम्नलिखित कबीर के दोहे बी.कॉम. प्रोग्राम के ge पेपर हिन्दी-'क' में लगे हुए हैं। पाछै लागा जाइ था, लोक बेद के साथि। आगै थे सतगुर मिल्या, दीपक दीया हाथि।।11।। दीपक दीया तेल भरि, बाती दई अघट्ट। पूरा किया बिसाहूणा, बहुरि न आवौ

कबीर के दोहे

निम्नलिखित दोहे बी.कॉम. प्रोग्राम के प्रथम सेमेस्टर में लगे हुए हैं। पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥ कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग दूडै वन माँहि। ऐसे घटि घटि राम है, दुनियाँ देखे नाँहि॥ यह