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kabir ke dohe

कबीर की भक्ति भावना (kabir ki bhakti bhavna)

प्रश्नः क्या कबीर ने अनीश्वरताप के निकट पहुंच चुके भारतीय जनमानस को निर्गुण ब्रम्ह की भक्ति की ओर प्रवृत्र होने की उत्तेजना प्रदान की? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए। (kabir ki bhakti bhavna) उत्तर : निर्गुण ब्रह्म गुणों से रहित न होकर गुणातीत

कबीर की भाषा (kabir ki bhasha)

प्रश्न : कबीर की भाषा के औचित्य पर सोदाहरण विचार कीजिए। (kabir ki bhasha) उत्तर : आ. रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार कबीर की भाषा सधुक्कड़ी थी। रमैनी और सबद गाने के पद हैं, जिसमें काव्य भाषा ब्रज और कहीं कहीं पूरबी बोली का प्रभाव लक्षित होता

कबीर के दोहे- बी.ए. प्रोग्राम हिन्दी-‘ग’

दोहे भली भई जु गुर मिल्या, नहीं तर होती हाणि। दीपक दिष्टि पतंग ज़्यूं, पड़ता पूरी जाणि।।19।। माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि इवैं पंडत। कहै कबीर गुर ग्यान थैं, एक आध उबरंत।।20।। सतगुर बपुरा क्या करै, जे सिपाही माहै चूक। भावै त्यूं

Kabir ke Dohe कबीर के दोहे हिन्दी-‘ग’

कबीर के दोहे (kabir ke dohe) गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय॥ निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय॥ कबिरा संगत साधु की ज्यों गंधी का बास। जो कछु

कबीर के दोहे हिन्दी-‘क'(B.Com.)

निम्नलिखित कबीर के दोहे बी.कॉम. प्रोग्राम के ge पेपर हिन्दी-'क' में लगे हुए हैं। पाछै लागा जाइ था, लोक बेद के साथि। आगै थे सतगुर मिल्या, दीपक दीया हाथि।।11।। दीपक दीया तेल भरि, बाती दई अघट्ट। पूरा किया बिसाहूणा, बहुरि न आवौ

कबीर के दोहे

निम्नलिखित दोहे बी.कॉम. प्रोग्राम के प्रथम सेमेस्टर में लगे हुए हैं। पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥ कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग दूडै वन माँहि। ऐसे घटि घटि राम है, दुनियाँ देखे नाँहि॥ यह

कबीर के दोहे

निम्नलिखित दोहे बी.ए. प्रोग्राम के GE हिन्दी-ख में लगे हुए हैं। सतगुर मिल्या त का भया, जे मनि पाड़ी भोल। पासि बिनंठा कप्पड़ा, क्या करै बिचारी चोल।।24।। बूड़े थे परि ऊबरे, गुर की लहरि चमंकि। भेरा देख्या जरजरा, (तब) ऊतरि पड़े