कविता: हमारे पूर्वज- मैथिलीशरण गुप्त
लेखक: मैथिलीशरण गुप्त
उन पूर्वजों की कीर्ति का वर्णन अतीव अपार है। गाते नहीं उनके हमीं गुण, गा रहा संसार है। वे धर्म्म पर काले निछावर तृण-समान शरीर थे, उनसे वही गम्भीर थे, वर वीर थे, ध्रुव धीर थे।
उनके अलौकिक दर्शनों से दूर होता!-->!-->!-->!-->!-->…