हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।
Browsing Tag

ek durasha ka saar

एक दुराशा(निबंध) : बालमुकुंद गुप्त

नारंगीके रस में जाफरानी वसन्ती बूटी छानकर शिवशम्भु शर्मा खटिया पर पड़े मौजोंका आनन्द ले रहे थे। खयाली घोड़ेकी बागें ढीली कर दी थीं। वह मनमानी जकन्दें भर रहा था। हाथ-पावोंको भी स्वाधीनता दी गई थी। वह खटियाके तूल अरजकी सीमा उल्लंघन करके