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dhoop kavita

कविता : धूप-केदारनाथ अग्रवाल

धूप चमकती है चांदी की साड़ी पहनेमैके में आई बिटिया की तरह मगन हैफूली सरसों की छाती से लिपट गई हैजैसे दो हमजोली सखियाँ गले मिली हैंभैया की बाहों से छूटी भौजाई-सीलहंगे की लहराती लचती हवा चली हैसारंगी बजती है खेतों की गोदी मेंदल के दल पक्षी