हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।
Browsing Tag

bihari ratnakar

बिहारी के दोहे, हिन्दी-‘ग’

दोहे मेरी भववाधा हरौ, राधा नागरि सोय। जा तन की झाँई परे स्याम हरित दुति होय।। कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय। वा खाये बौराये नर, वा पाए बौराये।। कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलत लजियात। भरे भौन मैं करत हैं नैननु ही सब बात।।

बिहारी के दोहे

दोहे मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय। जा तन की झाँई परे स्याम हरित दुति होय॥ कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय, वा खाये बौराये नर, वा पाए बौराये। थोड़े ही गुन रीझते बिसराई वह बानि। तुमहूँ कान्ह मनौ भए आज-काल्हि के दानि॥ कहत

बिहारी दोहे संख्या: 1, 10, 13, 32

(1) मेरी भाव बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ। जा तन की झाँई परै स्यामु हरित-दुति होई।।1।। (10) फिरि फिरि चितु उत हीं रहतु,, टुटी लाज की लाव। अंग-अंग-छबि-झौर मैं भयौ भौंर की नाव।।10।। (13) जोग-जुगति सिखए सबै मनौ महामुनि मैन। चाहत