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bihari ke padon ki saprasang vyakhya kijiye

बिहारी के दोहे, हिन्दी-‘ग’

दोहे मेरी भववाधा हरौ, राधा नागरि सोय। जा तन की झाँई परे स्याम हरित दुति होय।। कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय। वा खाये बौराये नर, वा पाए बौराये।। कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलत लजियात। भरे भौन मैं करत हैं नैननु ही सब बात।।

सप्रसंग व्याख्या, बिहारी

1. मेरी भव-बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ।जा तन की झाँई परै स्यामु हरित-दुति होई।। संकेत- मेरी भव बाधा ..................... हरित-दुति होई।। संदर्भ- प्रस्तुत पद हिन्दी साहित्य के रीतिकाल के रीतिसिद्ध कवि बिहारी लाल द्वारा रचित