हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।
Browsing Tag

bihari ke dohe

रीतिकालीन काव्य की पृष्ठभूमि, परिवेश और परिस्थितियाँ (ritikal ki paristhitiyan)

रीतिकाल हिंदी साहित्य (ritikal ki paristhitiyan) के इतिहास में सन् 1643 ईस्वी से 1843 ईस्वी तक का कालखंड है। इस काल की कविता संवेदना और स्वरूप दोनों दृष्टियों से पूर्ववर्ती भक्ति काल से पूर्णतः भिन्न है। रीतिकाल की कविता, जिसे मुख्य रूप से

बिहारी के दोहे, हिन्दी-‘ग’

दोहे मेरी भववाधा हरौ, राधा नागरि सोय। जा तन की झाँई परे स्याम हरित दुति होय।। कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय। वा खाये बौराये नर, वा पाए बौराये।। कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलत लजियात। भरे भौन मैं करत हैं नैननु ही सब बात।।

बिहारी के दोहे

दोहे मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय। जा तन की झाँई परे स्याम हरित दुति होय॥ कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय, वा खाये बौराये नर, वा पाए बौराये। थोड़े ही गुन रीझते बिसराई वह बानि। तुमहूँ कान्ह मनौ भए आज-काल्हि के दानि॥ कहत

बिहारी के दोहे हिन्दी-‘क’ (B.Com)

बिहारी के निम्नलिखित दोहे B.Com(P) के ge पेपर हिन्दी-'क' में लगे हुए हैं। पद बसै बुराई जासु तन, ताही कौ सनमानु। भलौ भलौ कहि छोडियै, खोर्टें ग्रह जपु दानु ॥381॥ मरतु प्यास पिंजरा पर्यो सुआ समै कैं फेर। आदरू दै दै बोलियतु बाइसु

बिहारी के दोहे (B.Com)

निम्नलिखित दोहे बी.कॉम. प्रोग्राम के प्रथम वर्ष में लगे हुए हैं। बतरस-लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ। सौंह करें, भौंहनु हँसे, दैन कहैं नटि जाइ॥ या अनुरागी चित्त की, गति समुझे नहिं कोइ। ज्यों-ज्यों बूड़े स्याम रँग, त्यों-त्यौं उज्जलु

बिहारी दोहे संख्या: 1, 10, 13, 32

(1) मेरी भाव बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ। जा तन की झाँई परै स्यामु हरित-दुति होई।।1।। (10) फिरि फिरि चितु उत हीं रहतु,, टुटी लाज की लाव। अंग-अंग-छबि-झौर मैं भयौ भौंर की नाव।।10।। (13) जोग-जुगति सिखए सबै मनौ महामुनि मैन। चाहत