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बिहारी के दोहे, हिन्दी-‘ग’

दोहे मेरी भववाधा हरौ, राधा नागरि सोय। जा तन की झाँई परे स्याम हरित दुति होय।। कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय। वा खाये बौराये नर, वा पाए बौराये।। कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलत लजियात। भरे भौन मैं करत हैं नैननु ही सब बात।।

बिहारी के दोहे (B.Com)

निम्नलिखित दोहे बी.कॉम. प्रोग्राम के प्रथम वर्ष में लगे हुए हैं। बतरस-लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ। सौंह करें, भौंहनु हँसे, दैन कहैं नटि जाइ॥ या अनुरागी चित्त की, गति समुझे नहिं कोइ। ज्यों-ज्यों बूड़े स्याम रँग, त्यों-त्यौं उज्जलु