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भाषाई अस्मिता और जेंडर

भाषाई अस्मिता मनुष्य समाज में जन्म लेता है पलता है, बढ़ता है और धीरे-धीरे दूसरों से अलग अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाता है। इस पहचान में जब अहम् की भावना घर कर जाती है तो अस्मिता का प्रश्न उठता है। स्वयं को दूसरों से कमतर न मानना ही अस्मिता