कविता : बेटी की बिदा-माखनलाल चतुर्वेदी
आज बेटी जा रही है,मिलन और वियोग की दुनिया नवीन बसा रही है।मिलन यह जीवन प्रकाशवियोग यह युग का अँधेरा,उभय दिशि कादम्बिनी, अपना अमृत बरसा रही है।यह क्या, कि उस घर में बजे थे, वे तुम्हारे प्रथम पैंजन,यह क्या, कि इस आँगन सुने थे, वे सजीले मृदुल!-->…