हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।

Solved Question Answers, भूषण

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प्रश्न-2: भूषण ‘वीर रस’ के कवि है, टिप्पणी लिखिए।

उत्तर- भूषण का हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान है। वे वीर रस के अद्वितीय कवि है। उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना ‘शिवराज भूषण’ है भूषण की रचनाओं में राष्ट्रीयता की भावना वीरता के उदगार व ओज गुण का वैशिष्ट्य कवि की वाणी देशवासियों के लिए आज भी प्रेरणादाई है। राष्ट्रीय भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति इनके काव्य की सबसे बड़ी विशेषता रही है इनके काव्य की दूसरी बड़ी विशेषता वीर रस की अद्भुत व्यंजना है इस कारण इन्हें हिंदी साहित्य का प्रथम राष्ट्रीय कवि कहा जा सकता है।

          भूषण ने अपनी रचनाओं में वीर रस को सम्मिलित किया इन्होंने अपने काव्य रचनाओं में असहाय हिन्दू समाज की वीरता को दर्शाया है, इनकी कविता में वीर रस, दानवीर और धर्मवीर के वर्णन प्रचुर मात्रा में मिलते हैं, भूषण ने वीर नायकों के सद्गुणों से परिपूर्ण रचनाओं का गुणगान किया। इनकी रचनाओं में दृश्य रचनाऐं काफी प्रसिद्ध है इन्होंने युद्ध के दृश्यों को बहुत ही अच्छे तरीके से चित्रित किया है।

          महाकवि भूषण द्वारा लिखे गये तीन ग्रंथ प्रसिद्ध है शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रसाल दशक यह तीनों ही रचनाऐं वीर रस से युक्त है इन ग्रंथों में वीर रस के कवि शिवाजी और छत्रसाल की वीरता का वर्णन किया गया है, इनके अन्य ग्रंथ भूषण उल्लास, भूषण हजारा आदि भी है। महाकवि भूषण ने युद्धों का सजीव वर्णन, युद्धनीति, शिवाजी की विशाल सेना आदि का वर्णन भी किया है।

          यह सर्वविदित है कि रीतिकाल के शृंगारमय वातावरण में कवि भूषण ने लोक से हटकर वीर रस का शंखनाद किया था।         

साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धारि सरजा सिवाजी जंग जीतन चलते।

          महाराज शिवाजी अपनी चतुरणिनी सेना सुजाता उत्साह में भरे शत्रुओं पर विजय पाने जा रहे हैं। स्पष्ट है कि उत्साह वीर रस का स्थायीभाव है और शिवाजी उस समय वीर रस में ओतप्रोत है। नगाड़ों की ध्वनि उद्दीपन बनकर उत्साह को बढ़ा रही है। छंद पाठकों के मन में भी वीर रस का संचार कर रहा है-

“उद्धृत अपार तुअ दुंदुमी-धुकार साथ लंघे यारावार बृंद बैरी बालकन के।
तेरे चतुरंग के तुरंगति के रंगे-रण साथ ही उड़त रजपुंज है परन के।”

          एक और दृश्य देखिए। वीर शिवाजी अहंकारी औरंगजेब के दरबार में उपस्थित है। शिवाजी को नीचा दिखाने के लिए उन्हें छह हमारी मनसबदारों जैसे छोटे पद वालों के साथ स्थान दिया गया है। कवि यहाँ पर शिवाजी के वीर स्वभाव का परिचय कराता हैं क्रोध रौद्र रस का स्थायी भाव है और वीर को अनुचित और स्वाभिमान पर आघात करने वाले आचरण पर क्रोध आना स्वाभाविक है। निर्भीक, स्वाभिमानी और वीरपुरुष भरे दरबार में औरंगजेब को चुनौती दे देते हैं।  

          भूषण ने जिस मूल उद्देश्य को दृष्टि में रखकर काव्य की सृष्टि की उसी के अनुरूप भाषा और काव्य पद्धति का अनुसरण भी किया। काव्य के मूल रस ‘वीर रस’ के उत्कर्ष को दिखाने हेतु जो तोड़जोड़ किया गय, वह विषयानुरूप है। इनके काव्य की धारा प्रत्यक्ष रूप से अपने भावों को बोध कराती हुई बहती चलती है। भूषण का काव्य वस्तु छत्रपति शिवाजी का गुण स्तवन और यशोगान है। इसके साथ उनका पूर्ण तादात्म्य हुआ है। कवि ने आश्रयदाताओं के शौर्य के वर्णन को उभारने के लिए मानवीय संवेदनाओं का बड़ा ही सुंदर चित्रण किया है। शिवाजी की शक्ति और प्रभाव औरों पर कितना था,  उनके पराक्रम से शत्रु कितना आंतकित रहते थे इसका एक चित्र देखिए जिनमें दिल्ली का सम्राट रात-दिन संशकित रहता है। उसे रात दिन नींद नहीं आती वह बार-बार चौक उठता है-

“चकित चकता चौकि चौकि उठ बार-बार
दिल्ली दहसति चितें चाह खरकति है।”

          भूषण का वीरकाव्य हिंदी साहित्य की वीरकाव्य परम्परा में लिखा गया है।

          इसी प्रकार अन्य संभावित छंदों में भ्ी हम महाराज शिवाजी की वीरता और शत्रुओं पर उनकी धाक का प्रमाण देखते हैं। “‘तेरी करबाल धरैं म्लेच्छन को काल’, मलेच्छवस पर सेर शिवराज है तथा जहाँ पातसाही वहाँ दावा शिवराज कौ” जैसे कथन शिवाजी महाराज की वीरता का प्रमाण दे रहे हैं। अतः संकलित छंद से स्वतः सिद्ध हो रहा है कि भूषण वीर रस के कवि हैं।   

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