Solved Question Answers, भूषण
प्रश्न-1: महाकवि भूषण की काव्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- रीतिकालीन कवियों में कवि भूषण लोकप्रिय है इन्होंने राष्ट्रीयता देश अनुसार हिन्दू धर्म, जाति रक्षा आदि भावों को अपनाकर इन भावों की रक्षा करने वाले राजा, महाराजाओं का यशोगान किया है। उनके काव्य की मुख्य विशेषता यह है कि उसमें कल्पना और पुराण की तुलना में इतिहास की सहायता अधिक ली गई है। इसके अतिरिक्त इस वीरकाव्य में देश की संस्कृति व गौरव का गान है। भूषण ने अपने वीरकाव्य में औरंगजेब के प्रति आक्रोश सर्वत्र व्यक्त किया है।
महाकवि भूषण का सबसे प्रसिद्ध रचना ‘शिवराज भूषण’ है। कविता के माध्यम से इन्होंने जातीय एकता का भाव भरा है, यही कारण है कि भूषण के समझ उस समय कोई टिक नहीं पाया वह अपने समय के बेजोड़ कवि हैं।
काव्य विशेषताऐं-
महाकवि भूषण का सम्पूर्ण काव्य वीर रस से ओत-प्रोत है उनके काव्य की निम्नलिखित विशेषताऐं उल्लेखनीय हैं-
(अ) भावपक्षीय विशेषताऐं-
(1) वीर रस की प्रधानता- वीर रस के कवियों में भूषण का नाम अग्रण्य है। उन्होंने महाराज छत्रसाल और शिवाजी की वीरता का अनेक प्रकार से वर्णन किया है। शिवाजी की चतुरंगिनी सेना (पैदल, घुड़सवार, हाथी, रथ-सवार) के प्रस्थान और रणकौशल के वर्णन में भूषण को बहुत सफलता मिली है-
“सजि चतुरंग सैन अंग मैं उमंग धारि
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं।”
शत्रु पक्ष की व्याकुलता, दीनता और खीझ का भी महाकवि भूषण ने अत्यंत हृदयस्पर्शी चित्रण किया है। औरंगजेब के अत्याचार भी उनकी दृष्टि से छिपे नहीं है। शिवाजी के साथ-साथ उन्होंने छत्रसाल की तलवार का भी सशक्त रूप से वर्णन किया है-
“भुज भुजगेस की वै संगिनी भुंजगिनी-सी,
खेदि खेदि खाती दीह दारुन दलन के।”
भूषण का वीरकाव्य हिंदी साहित्य की वीरकाव्य परंपरा में लिखा गया है। इनकी कविता का अंगीरस वीर रस है। इनकी रचनाओं शिवराज भूषण, शिवा बावनी और छत्रसाल दशक वीर रस से ओतप्रोत है। ये तीनों कृतियाँ भूषण की वीर भावना की सच्ची निर्देशक है।
इस प्रकार की सहसपूर्ण यक्ष-गाथाओं के आधार पर भूषण ने भारतीय संस्कृति की रक्षा की प्रेरणा दी है और हिन्दू धर्म को प्रस्थिापित किया है। वास्तव में भूषण का वीर रस की दृष्टि से काव्य में सर्वश्रेष्ठ स्थान है।
(2) राष्ट्रीय भावना- महाकवि भूषण का काव्य राष्ट्रीय भावना पर आधारित है। इसमें देश की संस्कृति और परंपरा के प्रति दृढ़ आस्था का भाव मिलता है। जब भारतवर्ष अपने गौरव और विशेषताओं को विस्तृत करने लगे तो कवि ने एक ऐसे नायक का गुणगान किया जिसमें उन आदर्शों को मूर्तरूप में देखा। उन्होंने जनजायक को काव्य का नायक बनाकर जनवाणी को ही एक प्रकार से अभिव्यक्ति दी है। राष्ट्रीय भावना के अन्तर्गत वीरों के गान, युद्धगीत, आत्म बलिदान की गाथाऐं, संस्कृति और सभ्यता मातृभूति के प्रति प्रेम भावना से संबंधित काव्य आदि आते हैं। भूषण के काव्य उन्हीं सीमाओं के भीतर आते हैं। कुछ आलोचकों ने उन पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगाया है। ऐसे लोगों का मत है कि भूषण ने सांप्रदायिकता के वशीभूत होकर हिन्दुत्व की रक्षा और हिन्दू संस्कृति के चित्रण में ही अपने काव्य की इतिश्री की है। लेकिन ये आलोचक ये भूल जाते हैं कि उस समय क्रूर मुगल सम्राट औरंगजेब हिन्दुस्तान पर घोर अत्याचार कर रहा था अनेक हिन्दुओं को मुसलमान बलाया जा रहा था। और उनके मंदिर नष्ट किए जा रहे थे। ऐसे समय में यदि भूषण का उद्देश्य शिवाजी की वीरता का वर्णन कर भारतीय धर्म और संस्कृति की रक्षा करना था तो वह निःसंदेह उचित ही था। शिवाजी को प्रत्येक दृष्टि से भूषण में अत्याचारियों के नाश हेतु शिवाजी को प्रत्येक दृष्टि से उत्साहित एवं प्रेरित किया है। इसलिए ये उनकी प्रशंसा करते हुए कहते हैं-
“वेद राखे विदित पुरान राखे सारयुत
राम नाम राख्यो अति रसना सुधर मै।”
(3) सजीव युद्ध वर्णन- महाकवि भूषण ने शिवाजी की सेना के प्रस्थान, चतुरंगिणी सेना के कौशन और युद्धों के सजीव चित्र अंकित किए हैं। इसका कारण यह है कि भूषण ने युद्धों को बहुत निकटता से देखा था। यद्यपि इन वर्णनों में अतिशयोक्ति का पुट है, तथापि का कौशल दर्शनीय है। सेना के प्रस्थान का यह वर्णन देखिए-
“ऐल फैल खैल भैल खलक मे गैलमैल,
गजन की हैलपैल खैल उलसत है।
तारा सो तरनि धूरि धारा में लगत जिमि,
धारा पर पारा पारावार यो हलत हैं।।”
इस प्रकार युद्ध का वर्णन करते हुए भूषण लिखते हैं कि-
“बाने फहराने घटराने घण्टा गजन के,
नाहीं ठहराने रावराने देसदेस के।”
(4) युग का प्रतिनिधित्व- महाकवि भूषण ने अपने युग के संघर्ष का प्रभावशाली चित्रण किया है। औरंगजेब के अत्याचारों का वर्णन करते हुए इन्होंने भारतीय राजपूतों के आपसीह वैमनस्य की ओर भी संकेत किया है-
“आपस की फूट ही तै सारे हिन्दुआन टूटै।”
औरंगजेब के प्रति उनका जातीय वैमनस्य न होकर शासक के रूप में उसकी अनीतियों के विरुद्ध है।
भूषण ने विदेशी शक्तियों से सिर उठाने और शिवाजी द्वारा उनके आंतकित करने का वर्णन किया है-
“तेरी धाक ही तें नित हवसी फिरंगी और,
विलाइती विलंदे करैं वारिधि विहरनों।”
इस प्रकार भूषण ने रीतिकालीन में भी ओजपूर्ण काव्य का प्रभावशाली प्रतिनिधित्व किया है।
कलापक्षीय विशेषताएँ-
(1) भाषा- भूषण ने ब्रजभाषा में काव्य-रचना की है, जिसमें अरबी, फारसी, प्रात, बुन्देली और खड़ी बोली आदि शब्दों के भी प्रयोग किए गए हैं। इनकी भाषा में ओज गुण सर्वत्र विद्यमान है तथा कहीं-कहीं शब्दों को इच्छानुसार तोड़ा मरोड़ा भी गया है। इनके काव्य में मुहावरों और लोकोक्तियों के सुंदर प्रयोग भी देखने को मिलते हैं।
(2) शैली- महाकवि भूषण के काव्य में ओजपूर्ण वर्णन शैली मिलती है जिसमें ध्वन्यात्मकता एवं चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है।
(3) छंद- भूषण ने कवित्व, सवैया, दोहा और छप्पय आदि छंदों को अपने काव्य का आधार बनाया है। वास्तव में उनका मन राष्ट्र नायक है। हम यह कह सकते हैं कि हिंदी में विशुद्ध वीरता की रचना करने वाले उकमात्र कवि भूषण हैं।
(4) अलंकार- भूषण ने अपने काव्य में अनेक अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है। इस दृष्टि से अनुप्रास, यमक, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा एवं अतिशयोक्ति आदि अलंकार प्रमुख है। यमक अलंकार का एक उदाहरण निम्न है-
“ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहनवारी
ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहाती है।”
काव्य के क्षेत्र में भूषण की प्रतिभा बहुमुखी है। वे कवि और आचार्य दोनों नजर आते हैं। प्रधानता कवि होने के कारण उनके काव्य का भावपक्ष प्रबल रहा, जिससे राष्ट्रीय चेतना की भावना प्रमुख रूप में थी वही आचार्य होने के नाते वे युग की शास्त्रीय पद्धति से परिचित थे जिसका लाभ उनके कलात्मक पक्ष को मिला। भूषण श्रोताओं में और पाठकों में वीरता की भावना जगाने में समर्थ है। उनकी काव्य प्रतिभा के कारण आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है- “भूषण अच्छे कवि थे, जिस रस को उन्होंने लिया उसका पूरा आवेश उनमें था।” जिस क्षेत्र को भूषण ने चुना उस क्षेत्र में अपने युग में वे अकेले हैं। यही उनकी विशेषता है जिसके कारण रीतिकालीन काव्यधारा में उनका विशिष्ट स्थान हुआ है।