Ram Avtar Guru Gobind Singh (राम अवतार)

प्रस्तुत पद सिक्खों के दसवें व अंतिम गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह द्वारा रचित राम काव्य शीर्षकतः राम अवतार (Ram Avtar Guru Gobind Singh) से लिए गए हैं। पद संख्या 616-622 नीचे दिए गये हैं :-
स्त्री रघुनदन की भुज ते जब छोर सरासन वान उडाने ।
भूमि अकाश पतार चहूँ चक पूर रहे नही जात पछाने ।
तोर सनाह सुबाहन के तन आहे करो नही पार पराने।
छेद करोटन मोटन कोट अटानमो जानकी वान पछाने ।।६१६।।
स्री असुरारदन के कर को जिन एक ही बान बिखे तन चाख्यो ।
भान सक्यो न भिर्यो हठ के भट एक ही घाइ धरा पर राप्यो।
छेद सनाह सुवाहन को सर ओटन कोट करोटन नाप्यो।
स्वार जुझार अपार हठी रन हार गिरे धर हाइ न भाख्यो ॥६१७॥
आन करे सुमरे सभही भट जीत वचे रन छाडि पराने ।
देव अदेवन के जितिया रन कोट हते कर एक न जाने।
स्री रघुराज प्राक्रम को लख तेज सवूह सभ भहराने।
ओटन कूद करोटन फाँध सु लकहि छाडि बिलक सिधाने ॥६१८॥
रावन रोस भर्यो रन मो गहि चीसहूँ वाहि हथयार प्रहारे।
भूमि अकाश दिशा विदिशा चकि चार रके नही जात निहारे ।
फोकन तै फ्ल तै मद्ध तै अघ तै वध के रणमडल डारे।
छत्र धुजा वर वाज रथो रथ काटि सभै रघुराज उतारे ॥६१६॥
रावन चउप चल्यो चपके निज बाज बिहीन जबै रथ जान्यो।
ढाल त्रिसूल गदा वरछी गहि त्री रघुनदन सो रन ठान्यो।
धाइ पर्यो ललकार हठी कम पूजन को कछु यास न मान्यो ।
अगद आदि हह्नवत ते लै भट कोट हुते कर एक न जान्यो ॥६२०॥
रावन को रघुराज जवै रणमडल आवत्त मद्धि निहार्यो ।
वीस सिला सित साइक लें करि कोपु बडो उर मद्ध प्रहार्यो ।
भेद चले मरमसथल को सर स्रोण नदी सर वीच पछार्यो।
आगे ही रंग चल्यो हृठिकै भट धाम को भूल न नाम उचार्यो ॥६२१॥
रोस भरयो रन मौ रघुनाथ सु पान के बीच सरासन ले के ।
पाँचक पाइ हटाइ दयी तिह वीसहूँ वाँहि विना ओह कै कै ।
दें दस वान विमान दसो सिर काट दए शिवलोक पठे कै।
स्री रघुराज वर्यो सिय को वहुरो जनु जुद्ध सुयवर जे कै ॥६२२॥
Ram Avtar Guru Gobind Singh