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Rajbhasha Hindi/राजभाषा हिन्दी

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भारत एक विशाल, बहुभाषी राष्ट्र है, जिसकी एकता और अखंडता को बनाए रखने में एक संपर्क भाषा की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, राष्ट्र निर्माताओं ने इस आवश्यकता को समझते हुए संविधान में एक ऐसी भाषा को स्थान दिया, जो केंद्र और राज्यों के बीच तथा विभिन्न राज्यों के प्रशासनिक कार्यों को सुचारू रूप से संचालित कर सके। यह भाषा राजभाषा हिंदी कहलाई। राजभाषा का शाब्दिक अर्थ है ‘राज-काज की भाषा’ – वह भाषा जिसका प्रयोग देश के सरकारी कार्यालयों, संसद, न्यायपालिका और केंद्र सरकार के कार्यों के लिए किया जाता है। भारतीय संविधान के भाग 17 और विशेष रूप से अनुच्छेद 343 में हिंदी को संघ की राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया है। (Rajbhasha Hindi)

संवैधानिक स्वरूप और प्रावधान

भारतीय संविधान ने राजभाषा हिंदी को न केवल एक प्रशासनिक उपकरण के रूप में स्थापित किया, बल्कि इसके विकास और प्रसार की जिम्मेदारी भी संघ सरकार पर डाली। (Rajbhasha Hindi)

1. राजभाषा का दर्जा (अनुच्छेद 343)

संविधान के अनुच्छेद 343(1) के अनुसार, “संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।” यह प्रावधान हिंदी को केंद्रीय प्रशासन की मुख्य भाषा के रूप में स्थापित करता है। (Rajbhasha Hindi)

2. अंग्रेजी का सह-राजभाषा के रूप में प्रयोग (अनुच्छेद 343/344)

संविधान लागू होने के पंद्रह वर्षों तक, अर्थात 1965 तक, अंग्रेजी को राजभाषा के साथ-साथ प्रयोग करने की छूट दी गई थी। राजभाषा अधिनियम, 1963 के तहत, 1965 के बाद भी हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी का प्रयोग सरकारी कार्यों में सह-राजभाषा के रूप में जारी रखने का प्रावधान किया गया, जो आज भी लागू है।

3. राजभाषा आयोग और समिति (अनुच्छेद 344)

राष्ट्रपति को राजभाषा के प्रगतिशील प्रयोग के संबंध में सिफारिशें देने के लिए राजभाषा आयोग गठित करने का अधिकार दिया गया है। इसी तरह, संसद की राजभाषा समिति का भी गठन किया जाता है, जो आयोग की सिफारिशों पर विचार करके अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपती है। (Rajbhasha Hindi)

4. क्षेत्रीय भाषाएँ और पत्राचार (अनुच्छेद 345, 346)

संविधान राज्यों को यह स्वतंत्रता देता है कि वे अपनी विधानसभाओं द्वारा किसी एक या एक से अधिक भाषाओं को या हिंदी को अपने राज्य की राजभाषा के रूप में अपना सकते हैं। केंद्र और राज्यों के बीच तथा विभिन्न राज्यों के बीच पत्राचार की भाषा संघ की राजभाषा होगी, बशर्ते कि दो या दो से अधिक राज्य हिंदी को पत्राचार की भाषा के रूप में स्वीकार कर लें।

राजभाषा नीति और कार्यान्वयन (Rajbhasha Hindi)

राजभाषा हिंदी को व्यवहार में लाने के लिए भारत सरकार ने एक सुगठित नीति अपनाई है। इस नीति का मुख्य लक्ष्य ‘क’ क्षेत्र (उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली आदि), ‘ख’ क्षेत्र (गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, चंडीगढ़ आदि) और ‘ग’ क्षेत्र (दक्षिण भारत के राज्य और पूर्वोत्तर के राज्य) में हिंदी के प्रयोग को चरणबद्ध तरीके से बढ़ाना है।

1. हिंदी प्रशिक्षण

केंद्र सरकार के कर्मचारियों को हिंदी में कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु विभिन्न प्रशिक्षण योजनाएँ (जैसे- हिंदी शिक्षण योजना) चलाई जाती हैं। हिंदी टाइपिंग और आशुलिपि (स्टेनोग्राफी) का प्रशिक्षण भी अनिवार्य रूप से दिया जाता है।

2. प्रोत्साहन योजनाएँ

सरकारी कार्यालयों में हिंदी में मूल टिप्पण और प्रारूपण करने वाले कर्मचारियों को पुरस्कृत करने के लिए नकद पुरस्कार योजनाएँ लागू की गई हैं। यह कर्मचारियों को हिंदी में काम करने के लिए प्रेरित करता है।

3. वार्षिक कार्यक्रम और निरीक्षण

राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, प्रतिवर्ष एक वार्षिक कार्यक्रम जारी करता है, जिसमें विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के लिए हिंदी के प्रयोग के लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं। राजभाषा समिति और अधिकारियों द्वारा कार्यालयों के निरीक्षण के माध्यम से इन लक्ष्यों की प्रगति की समीक्षा की जाती है।

4. तकनीकी विकास

हिंदी में कार्य को सुगम बनाने के लिए यूनिकोड आधारित हिंदी सॉफ्टवेयर, ई-गवर्नेंस में हिंदी का प्रयोग और विभिन्न प्रशासनिक एवं तकनीकी शब्दावलियों का निर्माण किया गया है। (Rajbhasha Hindi)

राजभाषा हिंदी के समक्ष चुनौतियाँ (Rajbhasha Hindi)

संवैधानिक संरक्षण के बावजूद, राजभाषा हिंदी के कार्यान्वयन में कई गंभीर चुनौतियाँ हैं:

1. भाषाई प्रतिरोध और क्षेत्रीय अस्मिता

सबसे बड़ी चुनौती गैर-हिंदी भाषी राज्यों, विशेषकर दक्षिण भारतीय राज्यों में हिंदी के अनिवार्य प्रयोग का प्रतिरोध है। वे इसे ‘हिंदी थोपना’ मानते हैं, जिससे भाषाई आधार पर मतभेद उत्पन्न होता है। राजभाषा नीति को लचीला और सहयोगात्मक बनाना आवश्यक है। (Rajbhasha Hindi)

2. द्विभाषिकता और अंग्रेजी का प्रभुत्व

प्रशासनिक और तकनीकी कार्यों में आज भी अंग्रेजी का प्रभुत्व बना हुआ है। ‘सह-राजभाषा’ के रूप में अंग्रेजी की निरंतर उपस्थिति ने हिंदी के पूर्ण कार्यान्वयन की गति को धीमा कर दिया है। कर्मचारी अक्सर सरलता के लिए अंग्रेजी का उपयोग करना पसंद करते हैं। (Rajbhasha Hindi)

3. तकनीकी और विधिक शब्दावली की जटिलता

राजभाषा हिंदी के लिए विकसित की गई प्रशासनिक, वैज्ञानिक और विधिक शब्दावली अक्सर अत्यधिक संस्कृतनिष्ठ और आम प्रयोग से दूर होती है। यह जटिलता सरकारी कर्मचारियों और आम जनता दोनों के लिए हिंदी में काम करना कठिन बना देती है। (Rajbhasha Hindi)

4. प्रेरणा और इच्छाशक्ति की कमी

अनेक सरकारी कार्यालयों में राजभाषा नियमों का पालन केवल औपचारिकता के लिए किया जाता है। कर्मचारियों में हिंदी में काम करने की आंतरिक प्रेरणा और उच्चाधिकारियों में नियमों को लागू करने की दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी एक बड़ी बाधा है।

राजभाषा हिंदी भारत की सांस्कृतिक और प्रशासनिक एकता का प्रतीक है। संविधान में इसे जो स्थान दिया गया है, वह इसकी राष्ट्रीय महत्ता को दर्शाता है। राजभाषा हिंदी का विकास केवल सरकारी आदेशों से संभव नहीं है, बल्कि इसके लिए जन-स्वीकार्यता, भाषाई सहिष्णुता और प्रयोगकर्ताओं की सकारात्मक भागीदारी आवश्यक है। (Rajbhasha Hindi)

आज के डिजिटल युग में, हिंदी को सरल, सुगम और तकनीकी रूप से उन्नत बनाकर, विभिन्न क्षेत्रों में इसका स्वाभाविक प्रयोग बढ़ाना होगा। राजभाषा नीति को अधिक व्यावहारिक और प्रोत्साहनपरक बनाकर ही हम हिंदी को सच्चे अर्थों में राष्ट्र के सभी प्रशासनिक और अकादमिक कार्यों की प्रभावी भाषा बना सकते हैं। हिंदी को केवल राजभाषा नहीं, बल्कि संपर्क भाषा, व्यापार की भाषा, और ज्ञान-विज्ञान की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का प्रयास ही इसे एक सशक्त राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करेगा, जिससे ‘एक राष्ट्र, एक भाव’ की संकल्पना साकार हो सकेगी।

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