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मीरा की भाषा शैली (mira ki bhasha shaili)

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मीरा बाई की भाषा-शैली (mira ki bhasha shaili) उनके काव्य की आत्मा है। उनकी भाषा सरल, सहज, संगीतमय और भावनाओं से ओतप्रोत है। मीरा ने किसी दुरूह या काव्य-प्रबंधित भाषा का प्रयोग नहीं किया, बल्कि ऐसी बोली चुनी जो सीधे हृदय को स्पर्श करे। उनके पद और भजन जनसाधारण के लिए रचे गए थे, इसलिए वे लोकभाषा की आत्मीयता और लय को अपने साथ लेकर चलते हैं। (mira ki bhasha shaili)

1. मिश्रित भाषा का प्रयोग

मीरा की भाषा मुख्यतः ब्रजभाषा, राजस्थानी/मेवाड़ी बोली और कहीं-कहीं साधारण हिंदी का मिश्रित रूप है।

  • राजस्थानी शब्द उनके जन्मस्थान की संस्कृति को उभारते हैं—जैसे “सास”, “देवर”, “राणा”, “पग”, “गल”, “म्हांणो”, “धरम”, “घूंघट” इत्यादि।
  • ब्रजभाषा का प्रयोग कृष्णभक्ति की परंपरा और माधुर्य भाव को और अधिक प्रबल बनाता है।

यह मिश्रित रूप उनके काव्य को लोकसुलभ, आत्मीय और मधुर बनाता है। (mira ki bhasha shaili)

2. भावप्रधान और आत्मकथात्मक लहजा

मीरा की भाषा में भावों की तीव्रता और व्यक्तिगत समर्पण की स्पष्टता है। उनके पद आत्मकथात्मक लगते हैं, जैसे वे सीधे अपने हृदय की वेदना, विरह और समर्पण को शब्द देते हों।

  • “जोगिया तू करै धूनी, मैं करूँ गिरधर गोपाल”
  • “म्हारे तो गिरधर गोपाल, दूसरा न कोई”

इन पंक्तियों में प्रेम की एकनिष्ठता और भक्त का व्यक्तिगत संवाद स्पष्ट दिखाई देता है।

3. पुनरावृत्ति, अनुप्रास और लयात्मकता

मीरा के काव्य में लय का विशेष महत्व है। उनके भजन गाने के लिए ही बने प्रतीत होते हैं।

  • ध्वन्यात्मक शब्द,
  • शब्दों की पुनरावृत्ति,
  • मधुर तुकांतता,
  • सहज छंद,
    इन सभी का प्रयोग उनके पदों को संगीतमय बनाता है। (mira ki bhasha shaili)

उदाहरण:
“पायो जी मैंने राम रतन धन पायो” — इसमें ‘पायो’ की पुनरावृत्ति लय और अर्थ दोनों को प्रबल करती है।

4. लोक-तत्वों से समृद्ध शैली

मीरा की भाषा में लोकगीतों, लोकरीतियों, त्योहारों, नृत्यों, मौसमों, और दैनिक जीवन के अनेक तत्व मिलते हैं।

  • होली, फाग, रास-लीला, झूला
  • श्रृंगार, सखी-संवाद, रात्रि-वर्णन
    ये सभी उनकी भाषा में सहज रूप से घुल-मिल जाते हैं।

5. प्रतीकात्मक और आध्यात्मिक भाषा

मीरा ने कई प्रतीक उधार लिए—

  • कृष्ण: प्रियतम, स्वामी, जीवन-आधार
  • साँवरिया: सौंदर्य और करुणा का प्रतीक
  • विष का प्याला, कुटिल सास, राणा: सांसारिक बाधाओं के प्रतीक

प्रतीक प्रयोग से उनका काव्य भावनात्मक और आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर गहराई प्राप्त करता है।

मीरा की भाषा-शैली लोकभाषा की सरलता, ब्रज की मधुरता, भावों की तीव्रता, संगीत की लय और आध्यात्मिकता के गहन प्रवाह से बनी है। यही कारण है कि उनकी भाषा सदियों के बाद भी वैसी ही जीवित और जन-जन की जुबान पर है।

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