DU B.A. (Hons.) Hindi Previous Year Paper हिन्दी कविता: आदिकाल एवं निर्गुण भक्तिकाव्य सेमेस्टर-1 (2023)

यह प्रश्न पत्र बी.ए. हिन्दी ऑनर्स के हिन्दी कविता:आदिकाल एवं निर्गुण भक्तिकाव्य का है।
Unique Paper Code | 2052101001 |
Name of the Paper | Hindi Kavita: Aadikal evam Nirgunbhakti Kavy हिन्दी कविता: आदिकाल एवं निर्गुणभक्ति काव्य |
Name of the Course | B.A. (Hons.) Hindi: DSC-1 |
Semester | 1 |
Duration | 3 Hours |
Maximum Marks | 90 |
छात्रों के लिए निर्देश:
- इस प्रश्न पत्र के मिलते ही ऊपर दिए गए निर्धारित स्थान पर अपना अनुक्रमांक लिखिए।
- सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
- इस प्रश्न पत्र में दो पृष्ठ है।
1. सप्रसंग व्याख्या कीजिए: (9×3=27)
(क) संगहें पान कम्मान राज उभ्भरे अंग अंतर बिराज॥
आलिंग बुबि उर चपि अप्प बद्धेव तेज तामंस दप्य॥
कर धरे से धनु आनंद चित्त। बिछुर्य मिल्यौ चिरकाल मित्त।।
कम्मान राज मिलि तेज ताय । अरिमझिबिटि मिलिमनु सहाय॥
अथवा
देख देख राधा रूप अपारा।
अपस्थ के विहि आनि मिलाओल स्थिति तल लावनि सार।
अगहि अंग अनंग मुरछायत हेरए पहए अधीर।
मनमथ कोटि मघन करु जे जन से हेरि महि मधि गीर।
कल-कल लखिमी चरणतल नेओछए रगिनि हेरि विभोरि।
करु अभिलाख मनहि पद पंकज अहोनिसि कोर अगोरि।
(ख) मूर्खों पीछे जिनि मिले, कहे कबीरा राम।
पाथर घाटा लोह सब, (तब) पारस कोर्णे काम।।
इस तन का दीवा करो बाती मेल्यू जीव।
लोही सींचो तेल ज्यूँ, कब मुख देखों पीव।।
अथवा
कहा नर गरबसि थोरी बात।
मन दस नाज टका दस गठिया, टेढी टेढौ जात॥ टेक॥
कहा लै आयो यहु धन कोऊ, कहा कोऊ लै जात।।
दिवस चारि की है पतिसाही, ज्यू बनि हरियल पात।।
राजा भयौ गांव सौ पाये, टका लाख दस ब्रात।।
रावन होत लंका को छत्रपति, पल मैं गई बिहात।।
माता पिता लोक सुत बनिता अंत न चले संगात।।
कहै कबीर राम भजि बौरे, जनम अकारथ जात॥
(ग) खेलत मानसरोवर गई। जाइ पाल पर ठाढ़ी भई।।
देखि सरोवर हँसे कुलेली। पदमावति सो कहहिं सहेली।।
ए रानी मन देखु विचारी। एहि नेहर रहना दिन चारी।।
जो लगि अहे पिता कर राजू। खेलि लेहु जो खेलहु आजू।।
पुनि सासुर हम गवनव काली। कित हम, कित यह सरवर पाली।।
कित आवन पुनि अपने हाथा। कित मिलि के खेलब एक साथा||
सासु ननद बोलिन्ह जिउ लेहीं। दारुन ससुर न निसरे देहीं।।
पिउ पियार सिर ऊपर, पुनि सो करे दहुँ काह।
दहुँ सुख राखे की दुख, दहुँ कस जनम निबाह।।
अथवा
कहा मानसर चाह सो पाई। पारस रूप इहाँ लगि आई।।
भा निरमल तिन्ह पायँन्ह परसे। पावा रूप रूप के दरसे।।
मलय- समीर बास तन आई। भा सीतल, गै तपनि बुझाई||
न जनौं कौन पौन लेइ आवा। पुन्य-दसा भै पाप गँवावा।।
ततस्वन हार बेगि उतिराना। पावा सखिन्ह चंद बिहँसाना||
बिगसा कुमुद देखि ससि रेखा। भै तहँ ओप जहाँ जोइ देखा।।
पावा रूप रूप जस चहा। ससि मुख जनु दरपन होइ रहा।।
नयन जो देखा कवल भा, निरमल नीर सरीर।
हँसत जो देखा हंस भा, डासन-जोति नाग हीर।।
2. “बानबेध समय” का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए। (14)
अथवा
“बानबेध समय” के काव्य सोन्दर्य की समीक्षा कीजिए।
3. विद्यापति भक्त अथवा श्रृंगारिक कवि हैं, तर्क सहित उत्तर दीजिये। (14)
अथवा
विद्यापति की काव्य भाषा पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
4. कबीर का काव्य “आँखिन देखी पर आधारित है, कागद लेखी पर नहीं”, इस कथन के आलोक में कबीर काव्य की समीक्षा कीजिए। (14)
अथवा
कबीर की सामाजिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
5. “जायसी प्रेम की पीर के कवि हैं, इस कथन के आधार पर जायसी की प्रेम भावना का विवेचन कीजिए। (14)
अथवा
सूफी काव्य परम्परा में जायसी का स्थान निर्धारित कीजिये।
6. किसी एक विषय पर टिप्पणी लिखिए: (7)
(क) विद्यापति का राधा रूप वर्णन
(ख) “गुरुदेव कौ अंग” का प्रतिपाद्य
(ग) “मानसरोदक“ खंड का काव्य सौंदर्य