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Study Material For UG
कविता : बलिका का परिचय-सुभद्रा कुमारी चौहान
यह मेरी गोदी की शोभा, सुख सोहाग की है लाली शाही शान भिखारन की है, मनोकामना मतवाली।
दीप-शिखा है अँधेरे की, घनी घटा की उजियाली उषा है यह काल-भृंग की, है पतझर की हरियाली।
सुधाधार यह नीरस दिल की, मस्ती मगन तपस्वी की जीवित ज्योति नष्ट!-->!-->!-->!-->!-->…
कविता : धूप-केदारनाथ अग्रवाल
धूप चमकती है चांदी की साड़ी पहनेमैके में आई बिटिया की तरह मगन हैफूली सरसों की छाती से लिपट गई हैजैसे दो हमजोली सखियाँ गले मिली हैंभैया की बाहों से छूटी भौजाई-सीलहंगे की लहराती लचती हवा चली हैसारंगी बजती है खेतों की गोदी मेंदल के दल पक्षी!-->…
कविता : तोड़ती पत्थर – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
वह तोड़ती पत्थर;देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर—वह तोड़ती पत्थर।
कोई न छायादारपेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;श्याम तन, भर बँधा यौवन,नत नयन प्रिय, कर्म-रत मन,गुरु हथौड़ा हाथ,करती बार-बार प्रहार :—सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार।!-->!-->!-->…
कविता : नर हो, न निराश करो-मैथिलीशरण गुप्त
कुछ काम करो, कुछ काम करोजग में रह कर कुछ नाम करोयह जन्म हुआ किस अर्थ अहोसमझो जिसमें यह व्यर्थ न होकुछ तो उपयुक्त करो तन कोनर हो, न निराश करो मन कोसंभलो कि सुयोग न जाय चलाकब व्यर्थ हुआ सदुपाय भलासमझो जग को न निरा सपनापथ आप प्रशस्त करो!-->…
कविता : हिमाद्रि तुंग श्रृंग-जयशंकर प्रसाद
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से, प्रबुद्ध शुद्ध भारती। स्वयंप्रभा समुज्ज्वला, स्वतंत्रता पुकारती॥
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ प्रतिज्ञ सोच लो। प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो बढ़े चलो॥
असंख्य कीर्ति रश्मियाँ, विकीर्ण दिव्य दाह-सी। सपूत मातृभूमि!-->!-->!-->!-->!-->…
कविता : बेटी की बिदा-माखनलाल चतुर्वेदी
आज बेटी जा रही है,मिलन और वियोग की दुनिया नवीन बसा रही है।मिलन यह जीवन प्रकाशवियोग यह युग का अँधेरा,उभय दिशि कादम्बिनी, अपना अमृत बरसा रही है।यह क्या, कि उस घर में बजे थे, वे तुम्हारे प्रथम पैंजन,यह क्या, कि इस आँगन सुने थे, वे सजीले मृदुल!-->…
घुसपैठिए (कहानी) : ओमप्रकाश बाल्मिकी PDF
लेखक : ओमप्रकाश वाल्मीकि
मेडिकल कॉलेज के छात्र सुभाष सोनकर की खबर से शहर की दिनचर्या पर कोई फर्क नहीं पड़ा था। अखबारों ने इसे आत्महत्या का मामला बताया था। एक ही साल में यह दूसरी मौत थी मेडिकल कॉलेज में। फाइनल वर्ष की सुजाता की मौत को!-->!-->!-->…
दोपहर का भोजन (कहानी) : अमरकांत PDF
लेखक : अमरकांत
सिद्धेश्वरी ने खाना बनाने के बाद चूल्हे को बुझा दिया और दोनों घुटनों के बीच सिर रखकर शायद पैर की उँगलियाँ या ज़मीन पर चलते चींटे - चींटियों को देखने लगी। अचानक उसे मालूम हुआ कि बहुत देर से उसे प्यास लगी है। वह मतवाले की!-->!-->!-->…
वापसी (कहानी) : उषा प्रियंवदा PDF
लेखिका : उषा प्रियंवदा
गजाधर बाबू ने कमरे में जमा सामान पर एक नज़र दौड़ाई-दो बक्स, डोलची, बालटी–“यह डिब्बा कैसा है, गनेशी?” उन्होंने पूछा। गनेशी बिस्तर बाँधता हुआ, कुछ गर्व, कुछ दुःख, कुछ लज्जा से बोला-“घरवाली ने साथ को कुछ बेसन के!-->!-->!-->…
वारिस(कहानी) : मोहन राकेश PDF
लेखक: मोहन राकेश
घड़ी में तीन बजते ही सीढ़ियों पर लाठी की खट्-खट् होने लगती और मास्टरजी अपने गेरुआ बाने में ऊपर आते दिखायी देते. खट्-खट् आवाज़ सुनते ही हम भागकर बैठक में पहुंच जाते और अपनी कापियां और किताबें ठीक करते हुए ड्योढ़ी की!-->!-->!-->…