हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।
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Study Material For UG

भोलराम का जीव : हरिशंकर परसाई

ऐसा कभी नहीं हुआ था... धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफ़ारिश के आधार पर स्वर्ग या नर्क में निवास-स्थान 'अलॉट' करते आ रहे थे। पर ऐसा कभी नहीं हुआ था। सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने

नाखून क्यों बढ़ते हैं? (निबंध) : हजारी प्रसाद द्विवेदी

बच्चे कभी-कभी चक्कर में डाल देनेवाले प्रश्न कर बैठते हैं। अल्पज्ञ पिता बड़ा दयनीय जीव होता है। मेरी छोटी लड़की ने जब उस दिन पूछ दिया कि आदमी के नाखून क्यों बढ़ते हैं, तो मैं कुछ सोच ही नहीं सका। हर तीसरे दिन नाखून बढ़ जाते हैं, बच्चे कुछ

मेले का ऊँट (निबंध) : बालमुकुंद गुप्त

भारत मित्र संपादक! जीते रही, दूध बताशे पीते रही । भांग भेजी सो अच्छी थी । फिर वैसी ही भेजना । गत सप्ताह अपना चिट्‌ठा आपके पत्र (भारत मित्र) में टटोलते हुए 'मोहन मेले' के लेख पर निगाह पड़ी । पढ़कर आपकी दृष्टि पर अफसोस हुआ । भाई, आपकी दृष्टि

हार की जीत (कहानी) : सुदर्शन

माँ को अपने बेटे, साहूकार को अपने देनदार और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवत-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता। वह घोड़ा बड़ा सुंदर था, बड़ा बलवान। उसके जोड़

बड़े भाई साहब (कहानी) : मुंशी प्रेमचंद

1 मेरे भाई साहब मुझसे पॉँच साल बडे थे, लेकिन तीन दरजे आगे। उन्‍होने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैने शुरू किया; लेकिन तालीम जैसे महत्‍व के मामले में वह जल्‍दीबाजी से काम लेना पसंद न करते थे। इस भवन कि बुनियाद खूब मजबूत डालना

सच्ची वीरता (हिन्दी निबंध) : सरदार पूर्ण सिंह

सच्चे वीर पुरुष धीर, गम्भीर और आज़ाद होते हैं । उनके मन की गम्भीरता और शांति समुद्र की तरह विशाल और गहरी या आकाश की तरह स्थिर और अचल होती है। वे कभी चंचल नहीं होते । रामायण में वाल्मीकि जी ने कुंभकर्ण की गाढ़ी नींद में वीरता का एक चिह्न

परिंदे (कहानी) : निर्मल वर्मा

अँधियारे गलियारे में चलते हुए लतिका ठिठक गई। दीवार का सहारा लेकर उसने लैंप की बत्ती बढ़ा दी। सीढ़ियों पर उसकी छाया एक बेडौल फटी-फटी आकृति खींचने लगी। सात नंबर कमरे से लड़कियों की बातचीत और हँसी-ठहाकों का स्वर अभी तक आ रहा था। लतिका ने

आकाशदीप (कहानी) : जयशंकर प्रसाद

1“बन्दी!”“क्या है? सोने दो।”“मुक्त होना चाहते हो?”“अभी नहीं, निद्रा खुलने पर, चुप रहो।”“फिर अवसर न मिलेगा।”“बड़ा शीत है, कहीं से एक कम्बल डालकर कोई शीत से मुक्त करता।”“आँधी की सम्भावना है। यही अवसर है। आज मेरे बन्धन शिथिल हैं।”“तो क्या तुम

संस्मरण साहित्य : उद्भव और विकास

          संस्मरण और रेखाचित्र में बहुत ही सूक्ष्म अंतर है। यदि लेखक व्यक्तित्व चित्रण तक ही स्मृति को सीमित रखता है तो वह रचना रेखाचित्र की श्रेणी में रखी जाएगी। यदि लेखक स्मृतियों से प्रसंग को उभारने का काम करता है तो वह रचना संस्मरण

रेखाचित्र : उद्भव और विकास

1940 के बाद हिंदी साहित्य में प्रयोग का दौर शुरू हुआ। प्रयोग मात्र कविता में ही नहीं किए गए। प्रयोग का असर साहित्य की विविध विधाओं पर भी हुआ। 1940 के बाद साहित्यिक विधाओं के नए-नए रूप सामने आए। उपन्यास जो अभी तक वर्णनात्मक विधा थी। उसे