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Study Material For UG
भाषा की परिभाषा एवं स्वरूप
प्र. भाषा की परिभाषा बताते हुए उसके स्वरूप को स्पष्ट करें।
उ. मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं में भाषा को भी शामिल किया जाता रहा है। भावों की अभिव्यक्ति के लिए भाषा की!-->!-->!-->…
भाषा-विज्ञान की उपयोगिता
प्र. भाषा-विज्ञान की उपयोगिता।
उ. सामान्य और बेहद आम प्रचलित भाषा में करें तो भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन जिस शास्त्र के अंतर्गत किया जाता है, उसे ही भाषा-विज्ञान कहा!-->!-->!-->…
वाक्य रचना के आधार और भेद
प्र. वाक्य रचना के आधार और भेद।
उ. भाषा की महत्तम व अर्थवान इकाई के साथ-साथ भावों एवं विचारों को अभिव्यक्ति प्रदान करने का कार्य वाक्य करता है। भाषा में महत्त्वपूर्ण स्थान रखने वाला वाक्य दरअसल!-->!-->!-->…
घनानन्द के पद, हिन्दी-‘ग’
पद
अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं। तहाँ साँचे चलें तजि आपनपी झिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं॥ घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक ते दूसरो आँक नहीं। तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं।।
रावरे रूप की!-->!-->!-->!-->!-->…
बिहारी के दोहे, हिन्दी-‘ग’
दोहे
मेरी भववाधा हरौ, राधा नागरि सोय। जा तन की झाँई परे स्याम हरित दुति होय।।
कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय। वा खाये बौराये नर, वा पाए बौराये।।
कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलत लजियात। भरे भौन मैं करत हैं नैननु ही सब बात।।
सूरदास के पद हिन्दी-‘ग’
पद
मैया! मैं नहिं माखन खायौ। ख्याल परै ये सखा सबै मिलि मेरे मुख लपटायी॥ देखि तुही सींके पर भाजन, ऊँच धरि लटकायी। हौं जु कहत नान्हे कर अपने मैं कैसें करि पायौ॥ मुख दधि पछि, बुद्धि इक कीन्ही, दोना पीठि दुरायौ। डारि साँटि, मुसुकाइ जसोदा,!-->!-->!-->…
कबीर के दोहे- बी.ए. प्रोग्राम हिन्दी-‘ग’
दोहे
भली भई जु गुर मिल्या, नहीं तर होती हाणि। दीपक दिष्टि पतंग ज़्यूं, पड़ता पूरी जाणि।।19।।
माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि इवैं पंडत। कहै कबीर गुर ग्यान थैं, एक आध उबरंत।।20।।
सतगुर बपुरा क्या करै, जे सिपाही माहै चूक। भावै त्यूं!-->!-->!-->!-->!-->!-->!-->…
AEC Hindi Syllabus Semester-III/IV DU PDF
दिल्ली विश्वविद्यालय में Ability Enhancement Course (AEC) हिन्दी में सेमेस्टर-III/IV के अंतर्गत निम्नलिखित तीन पेपर पढ़ाए जाएंगे:
व्यावहारिक हिन्दी (हिन्दी-क)
जनसंचार और रचनात्मक लेखन (हिन्दी-ख)
हिन्दी भाषा और तकनीक (हिन्दी-ग)
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कविता: रोटी और संसद- सुदामा पांडेय ‘धूमिल’
कवि: सुदामा पांडेय 'धूमिल'
एक आदमी रोटी बेलता है। एक आदमी रोटी खाता है एक तीसरा आदमी भी है जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है। वह सिर्फ रोटी से खेलता है मैं पूछता हूँ... 'यह तीसरा आदमी कौन है?' मेरे देश की संसद मौन है।
कविता: पुष्प की अभिलाषा- माखनलाल चतुर्वेदी
लेखक: माखनलाल चतुर्वेदी
चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंधा प्यारी को ललचाऊँ, चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ, चाह नहीं देवों के सिर पर चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ, मुझे तोड़ लेना बनमाली,!-->!-->!-->…