हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।
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Study Material For UG

कबीर के दोहे हिन्दी-‘क'(B.Com.)

निम्नलिखित कबीर के दोहे बी.कॉम. प्रोग्राम के ge पेपर हिन्दी-'क' में लगे हुए हैं। पाछै लागा जाइ था, लोक बेद के साथि। आगै थे सतगुर मिल्या, दीपक दीया हाथि।।11।। दीपक दीया तेल भरि, बाती दई अघट्ट। पूरा किया बिसाहूणा, बहुरि न आवौ

कविता: अग्निपथ- हरिवंश राय बच्चन PDF

वृक्ष हों भले खड़े, हों घने हों बड़े, एक पत्र छाँह भी, माँग मत, माँग मत, माँग मत, अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ। तू न थकेगा कभी, तू न रुकेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ, अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ। यह महान दृश्य है, चल रहा

कविता: अरुण यह मधुमय देश हमारा- जयशंकर प्रसाद PDF

अरुण यह मधुमय देश हमारा। जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा॥ सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर। छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुमकुम सारा॥ लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे। उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़

भूषण कवित्त (B.Com) सप्रसंग व्याख्या

निम्नलिखित कवित्त बी.कॉम. प्रोग्राम के प्रथम वर्ष में लगे हुए हैं। इंद्र जिमि जंभ पर, बाड़व ज्यौं अंभ पर, रावन सदंभ पर रघुकुल राज है। पौन बारिवाह पर, संभु रतिनाह पर, ज्यों सहस्रबाहु पर राम द्विजराज है॥ दावा द्रुमदंड पर, चीता मृगझुंड

बिहारी के दोहे (B.Com)

निम्नलिखित दोहे बी.कॉम. प्रोग्राम के प्रथम वर्ष में लगे हुए हैं। बतरस-लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ। सौंह करें, भौंहनु हँसे, दैन कहैं नटि जाइ॥ या अनुरागी चित्त की, गति समुझे नहिं कोइ। ज्यों-ज्यों बूड़े स्याम रँग, त्यों-त्यौं उज्जलु

कबीर के दोहे

निम्नलिखित दोहे बी.कॉम. प्रोग्राम के प्रथम सेमेस्टर में लगे हुए हैं। पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥ कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग दूडै वन माँहि। ऐसे घटि घटि राम है, दुनियाँ देखे नाँहि॥ यह

हिंदी की प्रमुख बोलियों का परिचय

1. खड़ीबोली आधुनिक हिंदी का मानकीकृत रुप खड़ी बोली को माना जाता है। खड़ी बोली का विकास शौरसेनी अपभ्रंश के पश्चिमी हिंदी उपभाषा से हुआ है। हिन्दुस्तानी, उर्दू, दक्खिनी हिंदी का आधार भी खड़ी बोली को माना जाता है। 'खड़ी बोली' शब्द की

केवट प्रसंग: रामचरितमानस – तुलसीदास सप्रसंग व्याख्या

दोहा : रथ हाँकेउ हय राम तन हेरि हेरि हिहिनाहिं। देखि निषाद बिषादबस धुनहिं सीस पछिताहिं ॥99॥ जासु वियोग बिल पसु ऐसें। प्रजा मातु पितु जिइहहिं कैसे॥ बरबस राम सुमंत्र पठाए। सुरसरि तीर आपु तब आए ॥1॥ मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु

कबीर के दोहे

निम्नलिखित दोहे बी.ए. प्रोग्राम के GE हिन्दी-ख में लगे हुए हैं। सतगुर मिल्या त का भया, जे मनि पाड़ी भोल। पासि बिनंठा कप्पड़ा, क्या करै बिचारी चोल।।24।। बूड़े थे परि ऊबरे, गुर की लहरि चमंकि। भेरा देख्या जरजरा, (तब) ऊतरि पड़े

बिहारी दोहे संख्या: 1, 10, 13, 32

(1) मेरी भाव बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ। जा तन की झाँई परै स्यामु हरित-दुति होई।।1।। (10) फिरि फिरि चितु उत हीं रहतु,, टुटी लाज की लाव। अंग-अंग-छबि-झौर मैं भयौ भौंर की नाव।।10।। (13) जोग-जुगति सिखए सबै मनौ महामुनि मैन। चाहत