हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।
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हिन्दी कहानी का उद्भव और विकास 

'कहानी' का प्राचीन नाम संस्कृत में 'गल्प' या 'आख्यायिका' मिलता है। आधुनिक हिन्दी कविता का जन्म वर्तमान युग की आवश्यकताओं के कारण हुआ। कहानी को पश्चिम में 'शार्ट स्टोरी' कहा जाता है। पाश्चात्य साहित्य में कहानी-कला का उद्भव सर्वप्रथम

हिन्दी उपन्यास का उद्भव और विकास

भारतेन्दु युग में ही हिंदी उपन्यास-लेखन की परम्परा का श्रीगणेश हुआ। तब से बराबर उन्नति करती हुई उप्नयास विधा समकालीन हिन्दी साहित्य की महत्वपूर्ण गद्य–विद्या के रूप में प्रतिष्ठित है। भारतेन्दु से लेकर आज तक के हिन्दी उपन्यास के समूचे

नयी कविता: परिवेश एवं प्रवृत्तियाँ

नयी कविता : सामान्य परिचय आधुनिक हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत जब दूसरा सप्तक (1951) में प्रकाशित हुआ लगभग उसी समय में नयी कविता जैसे प्रयोग होने लगा था। बाद में 1954 में डॉ. रामविलास शर्मा ने इसी नाम को स्वीकृति प्रदान की जो वास्तव में

प्रयोगवाद: परिवेश और प्रवृतियाँ

सामान्य परिचय: सन् 1943 में अज्ञेय द्वारा प्रकाशित 'तारसप्तक' के साथ ही प्रयोगवाद का आरम्भ माना जाता है। वास्तव में प्रगतिवाद विचारधारा अपने विकसित होने की अवस्था में क्रमशः एकांगी होती गयी जिससे एक प्रकार की दर्शनात्मकता का  प्रभाव उस

प्रगतिवाद: परिवेश और प्रवृत्तियाँ

प्रगतिवाद : सामान्य परिचय   जिस प्रकार द्विवेदी युग की इतिवृत्तात्मकता, उपदेशात्मकता और स्थूलता के प्रति विद्रोह में छायावाद का जन्म हुआ उसी प्रकार छायावाद की सूक्ष्मता, कल्पनात्मकता, व्यक्तिवादिता और समाज-विमुखता की

छायावाद क्या है: अर्थ, परिवेश एवं प्रवृत्तियाँ

छायावाद : सामान्य परिचय द्विवेदी युग के पश्चात हिन्दी साहित्य में जो कविता धारा प्रवाहित हुई, वह छायावादी कविता के नाम से प्रसिद्ध हुई। छायावाद की कालावधि सन् 1918 से 1936 तक

नवजागरण की परिस्थितियाँ और भारतेन्दु युग

नवजागरण :  हिन्दी साहित्य में आधुनिकता की शुरुआत का सम्बन्ध 'भारतीय नवजागरण' से है। भारतीय नवजागरण से मौलिक स्थापनाओं का जितना महत्त्व साहित्य के लिए है, उससे कहीं अधिक भारतीय इतिहास और विशेष रूप से हमारे राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन के

भाषा और सामाजिक व्यवहार

भाषाविज्ञान की अन्य शाखाओं की अपेक्षा समाज भाषा विज्ञान अभी हमारे यहाँ अपने शैशवा काल में ही चल रहा है। कारण यह है जिस प्रकार पश्चिमी देशों, विश्वविद्यालयों में इस विषय पर तेजी से काम हो रहा है उतना अभी हमारे यहाँ नहीं। यहाँ तक की

समाज भाषा विज्ञान और उसका स्वरूप

समाज भाषा विज्ञान क्या है? समाज भाषा विज्ञान तीन शब्दों के योग से बना है समाज, भाषा और विज्ञान समाज अर्थात् व्यक्तियों का समूह, समुदाय भाषा अर्थात् सम्प्रेषण का माध्यम (बोली/जबान) विज्ञान अर्थात् किसी की भी विशेष जानकारी। इस प्रकार समाज

भाषा और समाज का अंतर्संबंध

भाषा किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए ही अनिवार्य नहीं है बल्कि वह उस समाज के लिए भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जिस समाज विशेष में वह व्यक्ति रहता है। हमारा विश्व कई समाज विशेष से मिलकर बना है और इन समाज विशेष की पहचान वह