हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।
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भाषा नमूनों का सर्वेक्षण और विश्लेषण

भाषा-नमूनों का सर्वेक्षण नमूने अर्थात् सेम्पल और सर्वेक्षण अर्थात् सर्वे करना इस प्रकार भाषा नमूनों के सर्वेक्षण से तात्पर्य है कि जिस भाषा का सर्वेक्षण करना है, उस सर्वेक्षण से सम्बन्धित जितनी भी जानकारी तथ्य, आदि प्राप्त है उसको एकत्र

भाषा सर्वेक्षण : स्वरूप और प्रविधि

सर्वेक्षण को अंग्रेजी में Survey कहा जाता है। सर्वेक्षण से तात्पर्य है किसी विषय के सही तथ्यों की जानकारी प्राप्त करके पूरी जांच पड़ताल के साथ निरीक्षण करके किसी निष्कर्ष पर पहुँचने की क्रिया । उदाहरण के लिए हमारे देश में पोलियो उन्मूलन

भाषा और संस्कृति

जब प्रकृत या कच्चा माल परिष्कृत किया जाता है तो यह संस्कृत हो जाता है और जब यह बिगड़ जाता है तो 'विकृत' हो जाता है अंग्रेजी में संस्कृति के लिए 'कल्चर' शब्द या प्रयोग किया जाता है। जो लैटिन भाषा को 'कल्ट या कल्टस' से लिया गया है,

भाषाई अस्मिता और जेंडर

भाषाई अस्मिता मनुष्य समाज में जन्म लेता है पलता है, बढ़ता है और धीरे-धीरे दूसरों से अलग अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाता है। इस पहचान में जब अहम् की भावना घर कर जाती है तो अस्मिता का प्रश्न उठता है। स्वयं को दूसरों से कमतर न मानना ही अस्मिता

भाषा और वर्ग

भाषा और वर्ग का pdf प्राप्त करने के सबसे नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें। वर्ग से तात्पर्य है एक ही प्रकार अथवा बहुत कुछ मिलता-जुलता समूह । जब हम वर्ग को भाषा से जोड़ते है तो इसका तात्पर्य है एक समाज के भीतर जितने भी वर्ग पाए जाते हैं

भाषा और जाति

जाति शब्द संस्कृत की 'जनि' (जन) धातु में 'क्तिन्' प्रत्यय लगकर बना है। न्यायसूत्र के अनुसार 'समान प्रसावात्मिका जाति' अर्थात् जाति समान जन्म वाले लोगों को मिला कर बनती है। सामान्य रूप से यदि हम देखें तो जाति का सम्बन्ध मनुष्य के जन्म लेने

भाषा और समुदाय

प्रस्तावना: भाषा से तात्पर्य है वह माध्यम जिसके द्वारा व्यक्ति अपने भावों की अभिव्यक्ति करता है और दूसरे के विचारों को भी जानता है। समुदाय का अर्थ है झुण्ड अथवा एक-सी विशेषता रखने वाले लोगों का समूह। समाज में रहते हुए व्यक्ति अनेक

निबंध का उद्भव और विकास

हिन्दी साहित्य की अनेक विधाएँ जिनमें नाटक, उपन्यास, कहानी, कविता, निबंध, लघुकथा, रेखाचित्र, संस्मरण आदि सम्मिलित है। प्रत्येक विधा अपने आप में महत्त्वपूर्ण है। साहित्य में उसका स्थापना अपना अलग वजूद रखता है। कोई भी विधा किसी से कम नहीं

हिन्दी आलोचना का उद्भव और विकास

सामान्य परिचय : हिन्दी की विभिन्न विधाओं की तरह आलोचना का विकास भी प्रमुख रूप से आधुनिक काल की देन है। किसी भी साहित्य के आलोचना के विकास की दो प्रमुख शर्तो हैं- पहली कि आलोचना रचनात्मक साहित्य से जुड़ी हो। हिन्दी आलोचना अपने प्रस्थान

हिन्दी नाटक का उद्भव और विकास

नाट्य-लेखन एवं प्रयोग-विज्ञान (अभिनय) की भारतीय परंपरा बहुत पुरानी है। संस्कृत साहित्य में नाट्य-रचना और रंगमंचीय प्रदर्शनों का एक लम्बा इतिहास रहा है। किंतु मध्य-युग में आकर प्रेक्षागृहों और नाट्य-प्रदर्शनों का क्रमशः हरास होता गया। मनु