हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।
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Study Material For UG

मेरे राम का मुकुट भीग रहा है (निबंध) : विद्यानिवास मिश्र

महीनों से मन बेहद-बेहद उदास है। उदासी की कोई खास वजह नहीं, कुछ तबीयत ढीली, कुछ आसपास के तनाव और कुछ उनसे टूटने का डर, खुले आकाश के नीचे भी खुलकर साँस लेने की जगह की कमी, जिस काम में लगकर मुक्ति पाना चाहता हूँ, उस काम में हज़ार बाधाएँ; कुल

भाव या मनोविकार (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

अनुभूति के द्वंद्व ही से प्राणी के जीवन का आरंभ होता है। उच्च प्राणी मनुष्य भी केवल एक जोड़ी अनुभूति लेकर इस संसार में आता है। बच्चे के छोटे से हृदय में पहले सुख और दु:ख की सामान्य अनुभूति भरने के लिए जगह होती है। पेट का भरा या खाली रहना

नमक का दारोगा (कहानी) : मुंशी प्रेमचंद PDF

लेखक: प्रेमचंद   जब नमक का नया विभाग बना और ईश्वरप्रदत्त वस्तु के व्यवहार करने का निषेध हो गया तो लोग चोरी-छिपे इसका व्यापार करने लगे. अनेक प्रकार के छल-प्रपंचों का सूत्रपात हुआ, कोई घूस से काम निकालता था, कोई चालाकी से. अधिकारियों के

मलबे का मालिक (कहानी) : मोहन राकेश PDF

लेखक : मोहन राकेश पूरे साढ़े सात साल के बाद लाहौर से अमृतसर आए थे. हॉकी का मैच देखने का तो बहाना ही था, उन्हें ज़्यादा चाव उन घरों और बाज़ारों को फिर से देखने का था, जो साढ़े सात साल पहले उनके लिए पराए हो गए थे. हर सड़क पर मुसलमानों की

दुनिया का सबसे अनमोल रतन (कहानी) : मुंशी प्रेमचंद

लेखक : प्रेमचंद दिलफिगार एक कँटीले पेड़ के नीचे दामन चाक किये बैठा हुआ खून के आँसू बहा रहा था। वह सौन्दर्य की देवी यानी मलका दिलफरेब का सच्चा और जान-देनेवाला प्रेमी था। उन प्रेमियों में वही जो इत्र-फुलेल में बसकर और शानदार कपड़ों

BCom (Prog) Hindi Syllabus समेस्टर III/IV, GE/Language

हिन्दी गद्य विकास के विविध चरण 'क' CourseNature of the CourseTotal CreditsLectureTutorialPracticalEligibilityPre-requisiteहिन्दी गद्य विकास के विविध चरण 'क'GE/Language431012th Passद्वितीय सिमेस्टर उत्तीर्ण पाठ्यक्रम के उद्देश्य

कविता-लीक पर वें चलें : सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

लीक पर वे चलें जिनकेचरण दुर्बल और हारे हैं,हमें तो जो हमारी यात्रा से बनेऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं।साक्षी हों राह रोके खड़ेपीले बाँस के झुरमुट,कि उनमें गा रही है जो हवाउसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं।शेष जो भी हैं-वक्ष खोले डोलती

कविता : आह! धरती कितना देती है-सुमित्रानंदन पंत

मैने छुटपन मे छिपकर पैसे बोये थेसोचा था पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे ,रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी ,और, फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूगा !पर बन्जर धरती में एक न अंकुर फूटा ,बन्ध्या मिट्टी ने एक भी पैसा उगला ।सपने जाने कहां मिटे , कब

कविता : बलिका का परिचय-सुभद्रा कुमारी चौहान

यह मेरी गोदी की शोभा, सुख सोहाग की है लाली शाही शान भिखारन की है, मनोकामना मतवाली। दीप-शिखा है अँधेरे की, घनी घटा की उजियाली उषा है यह काल-भृंग की, है पतझर की हरियाली। सुधाधार यह नीरस दिल की, मस्ती मगन तपस्वी की जीवित ज्योति नष्ट

कविता : धूप-केदारनाथ अग्रवाल

धूप चमकती है चांदी की साड़ी पहनेमैके में आई बिटिया की तरह मगन हैफूली सरसों की छाती से लिपट गई हैजैसे दो हमजोली सखियाँ गले मिली हैंभैया की बाहों से छूटी भौजाई-सीलहंगे की लहराती लचती हवा चली हैसारंगी बजती है खेतों की गोदी मेंदल के दल पक्षी