हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।
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B.A (Programme)

बड़े भाई साहब (कहानी) : मुंशी प्रेमचंद

1 मेरे भाई साहब मुझसे पॉँच साल बडे थे, लेकिन तीन दरजे आगे। उन्‍होने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैने शुरू किया; लेकिन तालीम जैसे महत्‍व के मामले में वह जल्‍दीबाजी से काम लेना पसंद न करते थे। इस भवन कि बुनियाद खूब मजबूत डालना

सच्ची वीरता (हिन्दी निबंध) : सरदार पूर्ण सिंह

सच्चे वीर पुरुष धीर, गम्भीर और आज़ाद होते हैं । उनके मन की गम्भीरता और शांति समुद्र की तरह विशाल और गहरी या आकाश की तरह स्थिर और अचल होती है। वे कभी चंचल नहीं होते । रामायण में वाल्मीकि जी ने कुंभकर्ण की गाढ़ी नींद में वीरता का एक चिह्न

परिंदे (कहानी) : निर्मल वर्मा

अँधियारे गलियारे में चलते हुए लतिका ठिठक गई। दीवार का सहारा लेकर उसने लैंप की बत्ती बढ़ा दी। सीढ़ियों पर उसकी छाया एक बेडौल फटी-फटी आकृति खींचने लगी। सात नंबर कमरे से लड़कियों की बातचीत और हँसी-ठहाकों का स्वर अभी तक आ रहा था। लतिका ने

आकाशदीप (कहानी) : जयशंकर प्रसाद

1“बन्दी!”“क्या है? सोने दो।”“मुक्त होना चाहते हो?”“अभी नहीं, निद्रा खुलने पर, चुप रहो।”“फिर अवसर न मिलेगा।”“बड़ा शीत है, कहीं से एक कम्बल डालकर कोई शीत से मुक्त करता।”“आँधी की सम्भावना है। यही अवसर है। आज मेरे बन्धन शिथिल हैं।”“तो क्या तुम

संस्मरण साहित्य : उद्भव और विकास

          संस्मरण और रेखाचित्र में बहुत ही सूक्ष्म अंतर है। यदि लेखक व्यक्तित्व चित्रण तक ही स्मृति को सीमित रखता है तो वह रचना रेखाचित्र की श्रेणी में रखी जाएगी। यदि लेखक स्मृतियों से प्रसंग को उभारने का काम करता है तो वह रचना संस्मरण

रेखाचित्र : उद्भव और विकास

1940 के बाद हिंदी साहित्य में प्रयोग का दौर शुरू हुआ। प्रयोग मात्र कविता में ही नहीं किए गए। प्रयोग का असर साहित्य की विविध विधाओं पर भी हुआ। 1940 के बाद साहित्यिक विधाओं के नए-नए रूप सामने आए। उपन्यास जो अभी तक वर्णनात्मक विधा थी। उसे

सुभद्रा: महादेवी वर्मा का रेखाचित्र 

लेखिका: महादेवी वर्मा हमारे शैशवकालीन अतीत और प्रत्यक्ष वर्तमान के बीच में समय-प्रवाह का पाट ज्यों-ज्यों चौड़ा होता जाता है त्यों-त्यों हमारी स्मृति में अनजाने ही एक परिवर्तन लक्षित होने लगता है. शैशव की चित्रशाला के जिन चित्रों से

मेरे राम का मुकुट भीग रहा है (निबंध) : विद्यानिवास मिश्र

महीनों से मन बेहद-बेहद उदास है। उदासी की कोई खास वजह नहीं, कुछ तबीयत ढीली, कुछ आसपास के तनाव और कुछ उनसे टूटने का डर, खुले आकाश के नीचे भी खुलकर साँस लेने की जगह की कमी, जिस काम में लगकर मुक्ति पाना चाहता हूँ, उस काम में हज़ार बाधाएँ; कुल

भाव या मनोविकार (निबन्ध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

अनुभूति के द्वंद्व ही से प्राणी के जीवन का आरंभ होता है। उच्च प्राणी मनुष्य भी केवल एक जोड़ी अनुभूति लेकर इस संसार में आता है। बच्चे के छोटे से हृदय में पहले सुख और दु:ख की सामान्य अनुभूति भरने के लिए जगह होती है। पेट का भरा या खाली रहना