हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।
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सगुण भक्ति धारा: राम, कृष्ण काव्य

सगुण : रामभक्ति काव्यधारा भक्ति की सगुण शाखा में उपासक भगवान के सगुण और निर्गुण दोनों ही रूपों को देखता है। पर उपासना सुविधा के लिए वह सगुण रूप को ही प्रधानता देता है, जो अपनी साकार लीलाओं द्वारा लोकजीवन में व्याप्त हो सके। सगुण में

भक्ति आंदोलन और उसका अखिल भारतीय स्वरूप

भक्ति आंदोलन उद्भव और विकास भक्ति आंदोलन का उद्भव हिन्दी साहित्येतिहास के सर्वाधिक विवादास्पद प्रसंगों में से एक है। पूर्व मध्यकाल में जिस भक्ति धारा ने अपने आन्दोलनात्मक सामर्थ्य से समूचे राष्ट्र की शिराओं में नया रक्त प्रवाहित किया,

रासो काव्य

रासो काव्य की पृष्ठभूमि रासो काव्य से हमारा तात्पर्य आदिकालीन साहित्य की वीरगाथात्मक कृतियों से है। आदिकालीन साहित्य में रास ग्रंथ और रासो ग्रंथ दोनों प्रकार की रचनाओं की चर्चा मिलती है। रास साहित्य और रासो साहित्य का मुख्य अंतर

सिद्ध, नाथ एवं जैन साहित्य

सिद्ध साहित्य सिद्ध साहित्य से हमारा तात्पर्य वजयान परंपरा के उन सिद्धाचार्यों के साहित्य से है, जो अपभ्रंश के दोहे तथा चर्यापद के रूप में उपलब्ध है। सिद्धों ने प्रबंध काव्य और खंडकाव्य के स्थान पर गीति और मुक्तक काव्य में रचना की

हिन्दी साहित्य: काल विभाजन और नामकरण

हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन और नामकरण सामान्यतः आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के इतिहास से ही ग्रहण किया जाता है। आचार्य शुक्ल के नामांकन और सीमांकन की कुछ सीमाएँ भी है। (i) आदिकाल (वीरगाथा काल) : संवत

हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परंपरा

हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखने की परंपरा का आरंभ 19वीं सदी से माना जाता है। यद्यपि 19वीं सदी से पूर्व विभिन्न कवियों और लेखकों द्वारा अनेक ऐसे ग्रन्थों की रचना हो चुकी थी जिनमें हिन्दी के विभिन्न कवियों के जीवन वृत्त एवं कृतियों का परिचय

भोलराम का जीव : हरिशंकर परसाई

ऐसा कभी नहीं हुआ था... धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफ़ारिश के आधार पर स्वर्ग या नर्क में निवास-स्थान 'अलॉट' करते आ रहे थे। पर ऐसा कभी नहीं हुआ था। सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने

नाखून क्यों बढ़ते हैं? (निबंध) : हजारी प्रसाद द्विवेदी

बच्चे कभी-कभी चक्कर में डाल देनेवाले प्रश्न कर बैठते हैं। अल्पज्ञ पिता बड़ा दयनीय जीव होता है। मेरी छोटी लड़की ने जब उस दिन पूछ दिया कि आदमी के नाखून क्यों बढ़ते हैं, तो मैं कुछ सोच ही नहीं सका। हर तीसरे दिन नाखून बढ़ जाते हैं, बच्चे कुछ

मेले का ऊँट (निबंध) : बालमुकुंद गुप्त

भारत मित्र संपादक! जीते रही, दूध बताशे पीते रही । भांग भेजी सो अच्छी थी । फिर वैसी ही भेजना । गत सप्ताह अपना चिट्‌ठा आपके पत्र (भारत मित्र) में टटोलते हुए 'मोहन मेले' के लेख पर निगाह पड़ी । पढ़कर आपकी दृष्टि पर अफसोस हुआ । भाई, आपकी दृष्टि

हार की जीत (कहानी) : सुदर्शन

माँ को अपने बेटे, साहूकार को अपने देनदार और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवत-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता। वह घोड़ा बड़ा सुंदर था, बड़ा बलवान। उसके जोड़