हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।
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B.A (Programme)

कबीर के दोहे- बी.ए. प्रोग्राम हिन्दी-‘ग’

दोहे भली भई जु गुर मिल्या, नहीं तर होती हाणि। दीपक दिष्टि पतंग ज़्यूं, पड़ता पूरी जाणि।।19।। माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि इवैं पंडत। कहै कबीर गुर ग्यान थैं, एक आध उबरंत।।20।। सतगुर बपुरा क्या करै, जे सिपाही माहै चूक। भावै त्यूं

हिंदी की प्रमुख बोलियों का परिचय

1. खड़ीबोली आधुनिक हिंदी का मानकीकृत रुप खड़ी बोली को माना जाता है। खड़ी बोली का विकास शौरसेनी अपभ्रंश के पश्चिमी हिंदी उपभाषा से हुआ है। हिन्दुस्तानी, उर्दू, दक्खिनी हिंदी का आधार भी खड़ी बोली को माना जाता है। 'खड़ी बोली' शब्द की

केवट प्रसंग: रामचरितमानस – तुलसीदास सप्रसंग व्याख्या

दोहा : रथ हाँकेउ हय राम तन हेरि हेरि हिहिनाहिं। देखि निषाद बिषादबस धुनहिं सीस पछिताहिं ॥99॥ जासु वियोग बिल पसु ऐसें। प्रजा मातु पितु जिइहहिं कैसे॥ बरबस राम सुमंत्र पठाए। सुरसरि तीर आपु तब आए ॥1॥ मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु

कबीर के दोहे

निम्नलिखित दोहे बी.ए. प्रोग्राम के GE हिन्दी-ख में लगे हुए हैं। सतगुर मिल्या त का भया, जे मनि पाड़ी भोल। पासि बिनंठा कप्पड़ा, क्या करै बिचारी चोल।।24।। बूड़े थे परि ऊबरे, गुर की लहरि चमंकि। भेरा देख्या जरजरा, (तब) ऊतरि पड़े

बिहारी दोहे संख्या: 1, 10, 13, 32

(1) मेरी भाव बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ। जा तन की झाँई परै स्यामु हरित-दुति होई।।1।। (10) फिरि फिरि चितु उत हीं रहतु,, टुटी लाज की लाव। अंग-अंग-छबि-झौर मैं भयौ भौंर की नाव।।10।। (13) जोग-जुगति सिखए सबै मनौ महामुनि मैन। चाहत

भूषण कवित्त संख्या: 409, 411, 412

(409) गरुड को दावा जैसे नाग के समूह पर दावा नागजूह पर सिंहसिरताज को। दावा पुरहूत को पहारन के कुल पर दावा सबै पच्छिन के गोल पर बाज को। भूषण अखंड अखंड महिमंडल में तम पर दावा राबिकिरनसमाज कोपूरब पछाँह देस दच्छिन तें उत्तर लौं जहाँ पातसाही

रैदास के पद, पद संख्या: 1, 4, 19

(1) बिनु देखै उपजै नहीं आसा, जो दीसै सो होइ बिनासा। बरन सहित जो जापै नामु, सो जोगी केवल निहकामु॥ परचै रामु रवै जउ कोई, पारसु परसै दुविधा न होई॥1॥ रहाउ॥ सो मुनि मनकी दुविधा खाइ, बिनु दुआरे त्रैलोक समाइ। मनका सुभाउ सभु कोई करै, करता होइ

राष्ट्रभाषा, राजभाषा और सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी

भाषा के विविध रूपों-सामान्य भाषा, बोली, विभाषा, भाषा, राष्ट्रभाषा, राजभाषा, साहित्यक भाषा, कृत्रिम भाषा, सम्पर्क भाषा आदि में से केवल राजभाषा राष्ट्रभाषा तथा सम्पर्क भाषा के बारे में विवेचन करना यहाँ अभीष्ट है। राजभाषा हिन्दी का राजभाषा

जबान (निबंध) : बालकृष्ण भट्ट

कहने को मनुष्य के शरीर में 5 इंद्रियाँ हैं और यह पुतला उन्हीं 5 कर्मेंद्रियों का बना है किंतु उन उन इंद्रियों का प्राबल्य केवल अपने विषय में है अपना विषय छोड़ दूसरे के विषय में वे कुछ अधिकार नहीं रखतीं जैसा कर्णेद्रिय का अधिकार शब्द पर है

भक्तिकाल की दार्शनिक पृष्ठभूमि

हिन्दी साहित्य का भक्तिकाल संवत 1375 से संवत 1700 तक माना जाता है। यह हिन्दी साहित्य का श्रेष्ठ युग है। समस्त हिन्दी साहित्य के श्रेष्ठ कवि और उत्तम रचनाएँ इस युग में प्राप्त होती है। इस युग के परिप्रेक्ष्य पर विचार करते समय इतिहासकारों का