हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।
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वसंत आ गया है (निबंध) : हजारीप्रसाद द्विवेदी

जिस स्थान पर बैठकर लिख रहा हूँ, उसके आस-पास कुछ थोड़े-से पेड़ हैं। एक शिरीष हैं, जिस पर लंबी-लंबी सुखी छिमियाँ अभी लटकी हुई हैं। पत्ते कुछ झड़ गए हैं और कुछ झडऩे के रास्ते में हैं। जरा-सी हवा चली नहीं कि अस्थिमालिकावाले उन्मत्त कापालिक

लोभ और प्रीति (निबंध) : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

किसी प्रकार का सुख या आनंद देने वाली वस्तु के संबंध में मन की ऐसी स्थिति को जिसमें उस वस्तु के अभाव को भावना होते ही प्राप्ति, सान्निध्य या रक्षा की प्रबल इच्छा जग पड़े, लोभ कहते हैं। दूसरे की वस्तु का लोभ करके लोग उसे लेना चाहते हैं, अपनी

Previous Year Question Paper, अनुवाद व्यवहार और सिद्धांत, Sem-5

Unique Paper Code62055501 Name of the Paperअनुवाद व्यवहार और सिद्धांतName of the CourseB.A. (Prog.) Hindi - GE SemesterVDuration3 HoursMaximum Marks75 छात्रों के लिए निर्देश: इस प्रश्न-पत्र के मिलते ही ऊपर दिए गए निर्धारित स्थान पर

Previous Year Question Paper, जनपदीय साहित्य, GE, Semester-5

Unique Paper Code62055502Name of the Paperजनपदीय साहित्य (Janpadiye Sahitya)Name of the CourseB.A. (Prog.) Hindi - GE SemesterVDuration3 HoursMaximum Marks75 छात्रों के लिए निर्देश: इस प्रश्न-पत्र के मिलते ही ऊपर दिए गए निर्धारित

Previous Year Question Paper, कार्यालयी हिन्दी, SEC, Semester-5

Unique Paper Code62053511Name of the PaperKaryalayee Hindi (कार्यालयी हिन्दी)Name of the CourseB.A. (Prog.) Hindi - SEC SemesterVDuration3 HoursMaximum Marks75 छात्रों के लिए निर्देश: इस प्रश्न-पत्र के मिलते ही ऊपर दिए गए निर्धारित

वाक्य रचना के आधार और भेद

प्र. वाक्य रचना के आधार और भेद। उ.       भाषा की महत्तम व अर्थवान इकाई के साथ-साथ भावों एवं विचारों को अभिव्यक्ति प्रदान करने का कार्य वाक्य करता है। भाषा में महत्त्वपूर्ण स्थान रखने वाला वाक्य दरअसल

घनानन्द के पद, हिन्दी-‘ग’

पद अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं। तहाँ साँचे चलें तजि आपनपी झिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं॥ घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक ते दूसरो आँक नहीं। तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं।। रावरे रूप की

बिहारी के दोहे, हिन्दी-‘ग’

दोहे मेरी भववाधा हरौ, राधा नागरि सोय। जा तन की झाँई परे स्याम हरित दुति होय।। कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय। वा खाये बौराये नर, वा पाए बौराये।। कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलत लजियात। भरे भौन मैं करत हैं नैननु ही सब बात।।

सूरदास के पद हिन्दी-‘ग’

पद मैया! मैं नहिं माखन खायौ। ख्याल परै ये सखा सबै मिलि मेरे मुख लपटायी॥ देखि तुही सींके पर भाजन, ऊँच धरि लटकायी। हौं जु कहत नान्हे कर अपने मैं कैसें करि पायौ॥ मुख दधि पछि, बुद्धि इक कीन्ही, दोना पीठि दुरायौ। डारि साँटि, मुसुकाइ जसोदा,