हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।
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प्रगतिवाद: परिवेश और प्रवृत्तियाँ

प्रगतिवाद : सामान्य परिचय   जिस प्रकार द्विवेदी युग की इतिवृत्तात्मकता, उपदेशात्मकता और स्थूलता के प्रति विद्रोह में छायावाद का जन्म हुआ उसी प्रकार छायावाद की सूक्ष्मता, कल्पनात्मकता, व्यक्तिवादिता और समाज-विमुखता की

छायावाद क्या है: अर्थ, परिवेश एवं प्रवृत्तियाँ

छायावाद : सामान्य परिचय द्विवेदी युग के पश्चात हिन्दी साहित्य में जो कविता धारा प्रवाहित हुई, वह छायावादी कविता के नाम से प्रसिद्ध हुई। छायावाद की कालावधि सन् 1918 से 1936 तक

सप्रसंग व्याख्या, रामचन्द्रिका: केशवदास

किछौं यह राजपुत्री वरही बरी है, ........ हर हरि श्री हौ सिवा ........ चाहत फिरत हौ। संदर्भ- प्रस्तुत पद भक्तिकाल के कवि केशवदास द्वारा रचित एक प्रसिद्ध महाकाव्य ‘रामचंद्रिका’ से लिया गया है। यह पद ‘रामचंद्रिका’ के एक भाग वनगमन भाग का

सप्रसंग व्याख्या, भूषण

संकेत- इंद्र जिम जम पर ........ सेर सिवराज है। संदर्भ- प्रस्तुत पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के वीरकाव्य परम्परा के श्रेष्ठ कवि भूषण द्वारा रचित शिवभूषण से संकलित किया गया है। प्रसंग- इस पद में भूषण ने शिवाजी महाराज की वीरता का वर्णन

सप्रसंग व्याख्या, घनानन्द

संकेत- रावरे रूप की रीति अनूप .......................... बावरी रीझ की हाथनि हारियौ। संदर्भ- प्रस्तुत पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिमुक्त कवि घनानंद द्वारा रचित सुजानहित से संकलित किया गया है। प्रसंग- इस पद में कवि घनानंद ने

सप्रसंग व्याख्या, बिहारी

1. मेरी भव-बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ।जा तन की झाँई परै स्यामु हरित-दुति होई।। संकेत- मेरी भव बाधा ..................... हरित-दुति होई।। संदर्भ- प्रस्तुत पद हिन्दी साहित्य के रीतिकाल के रीतिसिद्ध कवि बिहारी लाल द्वारा रचित

सप्रसंग व्याख्या, सूरदास

2. बिन गोपाल बैरिन भईं कुंजै।तब ये लता लागति अति शीतल, अब भईं ज्वाल की पुंजै।।बृथा बहति जमुना, खग बोलत, ब्रथा कमल फुलै, अलि गुंजैं।पवन पाति धनसार संजीवनि दधिसुत किरन भानु भईं भुजैं।। ए, ऊधो, कहियो माधव सो बिरह कदन करि मारत

सप्रसंग व्याख्या, सूरदास

1. उद्धव! यह मन निश्चय जानों।मन क्रम बच मैं तुम्हैं पठावत ब्रज को तुरत पलानो।।पूरन ब्रह्म, सकल, अविनासी ताके तुम हो ज्ञाता।रेख, न रूप, जाति, कुल, नाही जाके नहीं पितु माता।।यह मत दै गोपिन कहु आवहु बिरह नदी में भासति।सूर तुरत यह जाय

सप्रसंग व्याख्या, सुंदरकांड: तुलसीदास

2.  तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुन्दर।चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष विषाद हृदयै अकुलानी।।जीति को सकङ् अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई।।सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना।।रामचन्द्र गुन बरने लागा। सनतहिं सीता

सप्रसंग व्याख्या, सुंदरकांड: तुलसीदास

1.  प्रबिसि नगर कीजै सब काजा।हृदय राखि कोसलपुर राजा।।गरल सुधा रिपु करहिं मिताई।गोपद सिंधु अनल सितलाई।।गरुड़ सुमेरू रेनु समताही। राम कृपा करि चितवा बाही।।अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना।।मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा।देख जहँ