हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।
Browsing Category

B.A. (Hons.) Hindi

बादल को घिरते देखा है : नागार्जुन (व्याख्या) badal ko ghirte dekha hai

कविता "बादल को घिरते देखा है" (badal ko ghirte dekha hai) नागार्जुन के कविता संग्रह "युगधारा" से ली गई है। इस कविता में नागार्जुन ने प्रकृति का अति मनमोहक वर्णन किया है जिसमें उन्होंने बादलों को केंद्र में रखा है। इसमें उन्होंने बादल के

निबंध का उद्भव और विकास

हिन्दी साहित्य की अनेक विधाएँ जिनमें नाटक, उपन्यास, कहानी, कविता, निबंध, लघुकथा, रेखाचित्र, संस्मरण आदि सम्मिलित है। प्रत्येक विधा अपने आप में महत्त्वपूर्ण है। साहित्य में उसका स्थापना अपना अलग वजूद रखता है। कोई भी विधा किसी से कम नहीं

हिन्दी आलोचना का उद्भव और विकास

सामान्य परिचय : हिन्दी की विभिन्न विधाओं की तरह आलोचना का विकास भी प्रमुख रूप से आधुनिक काल की देन है। किसी भी साहित्य के आलोचना के विकास की दो प्रमुख शर्तो हैं- पहली कि आलोचना रचनात्मक साहित्य से जुड़ी हो। हिन्दी आलोचना अपने प्रस्थान

हिन्दी नाटक का उद्भव और विकास

नाट्य-लेखन एवं प्रयोग-विज्ञान (अभिनय) की भारतीय परंपरा बहुत पुरानी है। संस्कृत साहित्य में नाट्य-रचना और रंगमंचीय प्रदर्शनों का एक लम्बा इतिहास रहा है। किंतु मध्य-युग में आकर प्रेक्षागृहों और नाट्य-प्रदर्शनों का क्रमशः हरास होता गया। मनु

हिन्दी कहानी का उद्भव और विकास 

'कहानी' का प्राचीन नाम संस्कृत में 'गल्प' या 'आख्यायिका' मिलता है। आधुनिक हिन्दी कविता का जन्म वर्तमान युग की आवश्यकताओं के कारण हुआ। कहानी को पश्चिम में 'शार्ट स्टोरी' कहा जाता है। पाश्चात्य साहित्य में कहानी-कला का उद्भव सर्वप्रथम

हिन्दी उपन्यास का उद्भव और विकास

भारतेन्दु युग में ही हिंदी उपन्यास-लेखन की परम्परा का श्रीगणेश हुआ। तब से बराबर उन्नति करती हुई उप्नयास विधा समकालीन हिन्दी साहित्य की महत्वपूर्ण गद्य–विद्या के रूप में प्रतिष्ठित है। भारतेन्दु से लेकर आज तक के हिन्दी उपन्यास के समूचे

नयी कविता: परिवेश एवं प्रवृत्तियाँ

नयी कविता : सामान्य परिचय आधुनिक हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत जब दूसरा सप्तक (1951) में प्रकाशित हुआ लगभग उसी समय में नयी कविता जैसे प्रयोग होने लगा था। बाद में 1954 में डॉ. रामविलास शर्मा ने इसी नाम को स्वीकृति प्रदान की जो वास्तव में

प्रयोगवाद: परिवेश और प्रवृतियाँ

सामान्य परिचय: सन् 1943 में अज्ञेय द्वारा प्रकाशित 'तारसप्तक' के साथ ही प्रयोगवाद का आरम्भ माना जाता है। वास्तव में प्रगतिवाद विचारधारा अपने विकसित होने की अवस्था में क्रमशः एकांगी होती गयी जिससे एक प्रकार की दर्शनात्मकता का  प्रभाव उस

प्रगतिवाद: परिवेश और प्रवृत्तियाँ

प्रगतिवाद : सामान्य परिचय   जिस प्रकार द्विवेदी युग की इतिवृत्तात्मकता, उपदेशात्मकता और स्थूलता के प्रति विद्रोह में छायावाद का जन्म हुआ उसी प्रकार छायावाद की सूक्ष्मता, कल्पनात्मकता, व्यक्तिवादिता और समाज-विमुखता की

छायावाद क्या है: अर्थ, परिवेश एवं प्रवृत्तियाँ

छायावाद : सामान्य परिचय द्विवेदी युग के पश्चात हिन्दी साहित्य में जो कविता धारा प्रवाहित हुई, वह छायावादी कविता के नाम से प्रसिद्ध हुई। छायावाद की कालावधि सन् 1918 से 1936 तक