हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।
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हँसो हँसो जल्दी हँसो (कविता) : रघुवीर सहाय Hanso Hanso Jaldi Hanso

हँसो हँसो जल्दी हँसो (Hanso Hanso Jaldi Hanso) : हँसो तुम पर निगाह रखी जा रही जा रही है हँसो अपने पर न हँसना क्योंकि उसकी कड़वाहट पकड़ ली जाएगीऔर तुम मारे जाओगेऐसे हँसो कि बहुत खुश न मालूम होवरना शक होगा कि यह शख़्स शर्म में

स्वाधीन व्यक्ति : रघुवीर सहाय (Swadhin Vyakti Kavita)

यह कविता स्वाधीन व्यक्ति (swadhin vyakti kavita) एक कवि के मन में चल रहे द्वन्द्व को दिखाती है और अंत में एक स्वाधीन व्यक्ति के रूप में सामने आता है। इस अन्धेरे में कभी-कभीदीख जाती है किसी की कविताचौंध में दिखता है एक और कोई कवि

देवी (कहानी) : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला Devi (Kahani) : Nirala

देवी (devi kahani nirala) सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' द्वारा लिखी गई बहुत ही मार्मिक कहानी है। कहानी का पाठ नीचे दिया गया है। 1बारह साल तक मकड़े की तरह शब्दों का जाल बुनता हुआ मैं मक्खियाँ मारता रहा। मुझे यह ख्याल था कि मैं साहित्य की

अभी न होगा मेरा अन्त : सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” Abhi na hoga mera ant

महाप्राण निराला कृत अभी न होगा मेरा अंत (Abhi na hoga mera ant) एक बेहद ही प्रेरणादायक कविता है, जिसमें निराला जीवन के प्रति उत्साह दिखाते हुए कहते हैं कि अभी उनका अंत नहीं होगा क्योंकि अभी ही तो उनके जीवन में उमंग और उल्लास से भरा वसंत

वर दे! वीणावादिनी : सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ Var de veena vadini

महाप्राण निराला कृत वर दे! वीणावादिनी (Var de veena vadini) माँ शारदा की वंदना हेतु लिखा गया एक बेहद ही मनोरम और भक्तिमय गीत है। इस कविता में जहां भक्ति दिखाई पड़ती वहीं निराला माँ शारदा से अपने देशवासियों के लिए स्वतंत्रता का अमर वरदान

भारती वन्दना : सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला Bharati Vandana Kavita

भारती वंदना (bharati vandana kavita) कविता महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित एक देशभक्ति रचना है, जो उन्होंने मान भारती के चरणों में पुष्पगुच्छ के समान समर्पित की है। भारती, जय, विजय करेकनक - शस्य - कमल धरे!लंका पदतल

हिंदी की प्रमुख बोलियों का परिचय

1. खड़ीबोली आधुनिक हिंदी का मानकीकृत रुप खड़ी बोली को माना जाता है। खड़ी बोली का विकास शौरसेनी अपभ्रंश के पश्चिमी हिंदी उपभाषा से हुआ है। हिन्दुस्तानी, उर्दू, दक्खिनी हिंदी का आधार भी खड़ी बोली को माना जाता है। 'खड़ी बोली' शब्द की

कविता : तोड़ती पत्थर – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

वह तोड़ती पत्थर;देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर—वह तोड़ती पत्थर। कोई न छायादारपेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;श्याम तन, भर बँधा यौवन,नत नयन प्रिय, कर्म-रत मन,गुरु हथौड़ा हाथ,करती बार-बार प्रहार :—सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार।