Browsing Category
default
Rajbhasha Hindi (राजभाषा हिन्दी)
प्रश्न: 5- राजभाषा हिन्दी के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए। (Rajbhasha Hindi)
उत्तर : राजभाषा से तात्पर्य है कि संविधान द्वारा सरकारी काम काज की, प्रशासन, संसद और विधानमण्डलों तथा न्यायिक कार्यकलाप के लिए स्वीकृत भाषा।
राजभाषा शब्द का!-->!-->!-->!-->!-->…
हिन्दी का भौगोलिक विस्तार (hindi ka bhogolik vistar)
प्रश्न : हिन्दी के भौगोलिक विस्तार को स्पष्ट कीजिए। (hindi ka bhogolik vistar)
उत्तर : हिन्दी भाषा विश्व में बोली जाने वाली भाषाओं में तीसरे स्थान पर है। करीब 609 अरब लोग हिन्दी भाषा का प्रयोग प्राथमिक, और द्वितीयक भाषा के रूप में करते!-->!-->!-->…
कबीर की भक्ति भावना (kabir ki bhakti bhavna)
प्रश्नः क्या कबीर ने अनीश्वरताप के निकट पहुंच चुके भारतीय जनमानस को निर्गुण ब्रम्ह की भक्ति की ओर प्रवृत्र होने की उत्तेजना प्रदान की? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए। (kabir ki bhakti bhavna)
उत्तर : निर्गुण ब्रह्म गुणों से रहित न होकर गुणातीत!-->!-->!-->…
कबीर की भाषा (kabir ki bhasha)
प्रश्न : कबीर की भाषा के औचित्य पर सोदाहरण विचार कीजिए। (kabir ki bhasha)
उत्तर : आ. रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार कबीर की भाषा सधुक्कड़ी थी। रमैनी और सबद गाने के पद हैं, जिसमें काव्य भाषा ब्रज और कहीं कहीं पूरबी बोली का प्रभाव लक्षित होता!-->!-->!-->…
आषाढ़ का एक दिन : मोहन राकेश (ashadh ka ek din)
प्रश्न : रंगमंचीय संभावनाओं की दृष्टि से किए गए एक प्रयोग के रूप में 'आषाढ का एक दिन' नाटक पर विचार कीजिए।
उत्तर : नाटक की भूमिका में मोहन राकेश लिखते हैं कि 'हिन्दी रंगमन्च को हिन्दी भाषी प्रदेश की सांस्कृतिक पूर्तियों और आकांक्षाओं का!-->!-->!-->…
विद्यापति की भक्ति भावना (vidyapati ki bhakti bhavna)
प्रश्न: विद्यापति की कविता में व्यक्त भक्ति स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :- आदिकाल में उभरते कवि विद्यापति की कविता में भक्ति तत्व की विद्यमानता बहस का विषय रही है। आ. शुक्ल उनकी आध्यात्मिकता पर कटाक्ष करते है तो वहीं!-->!-->!-->…
आदिकालीन प्रवृत्तियाँ एवं डिंगल-पिंगल का भेद (aadikal ki pravritiyan)
प्रश्न- आदिकालीन हिन्दी भाषा की प्रमुख प्रवृत्तियों का परिचय देते हुए डिंगल और पिंगल का अंतर स्पष्ट कीजिए। (aadikal ki pravritiyan)
उत्तर:- आदिकालीन हिन्दी भाषा भिन्न-भिन्न चरणों में विकसित होती रही जो कहीं प्राकृताभास अपभ्रंश में दिखाई!-->!-->!-->…
Beimani ki Parat बेईमानी की परत : हरिशंकर परसाई
"बेईमानी की परत" (Beimani ki Parat) हरिशंकर परसाई द्वारा लिखा गया एक प्रसिद्ध व्यंग्य निबंध है। यह निबंध समाज में व्याप्त बेईमानी और भ्रष्टाचार पर तीखा कटाक्ष करता है। हरिशंकर परसाई ने इस निबंध में बेईमानी के विभिन्न रूपों और उसे छिपाने के!-->…
Akal Utsav अकाल-उत्सव : हरिशंकर…
हरिशंकर परसाई का "अकाल उत्सव" (Akal Utsav) एक शक्तिशाली और विचारोत्तेजक व्यंग्यात्मक निबंध है। यह निबंध अकाल की कठोर वास्तविकता और उसके चारों ओर के विकृत उत्सव को दर्शाता है। यह निबंध बहुत ही स्पष्टता से बताता है कि समाज में, जहाँ एक ओर!-->…
Viklang Shraddha Ka Daur विकलांग श्रद्धा का दौर : हरिशंकर…
"विकलांग श्रद्धा का दौर" (Viklang Shraddha Ka Daur) हिंदी के विख्यात साहित्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित एक प्रसिद्ध व्यंग्य है। यह व्यंग्य राजनीतिक और सामाजिक भ्रष्टाचार पर तीखा प्रहार करता है और इसमें हरिशंकर परसाई ने अपनी रचनात्मक!-->…