हिंदी साहित्य की ओर एक कदम।

मीरा के पद सप्रसंग व्याख्या

0 318

मीराबाई के निम्नलिखित पद बी.कॉम प्रोग्राम के ge पेपर हिन्दी-‘क’ में लगे हुए हैं।

पद

मण थें परस हरि रे चरण॥टेक॥
सुभग सीतल कँवल कोमल, जगत ज्वाला हरण।
जिण चरण प्रहलाद परस्याँ, इन्द्र पदवी धरण।
जिण चरण ध्रुव अटल करस्याँ, सरण असरण सरण।
जिण चरण ब्रह्माण्ड भेटयाँ, नखसियाँ सिरी धरण।
जिण चरण कालियाँ नाथ्याँ, गोप-लीला करण।
जिण चरण गोबरधन धाआँ गरब मघवा हरण ॥1॥

हरि म्हारा जीवन प्राण अधार ॥टेक॥
और आसिरो णा म्हारा थें विण, तीनूँ लोक मँझार।
थें विण म्हाणे जग णा सुहावाँ, निरख्याँ सब संसार।
मीराँ रे प्रभु दासी रावली, लीज्यो णेक णिहार॥4॥

तनक हरि चितवाँ म्हारी ओर॥टेक॥
हम चितवाँ थें चितवो णा हरि, हिवड़ों बड़ो कठोर।
म्हारी आसा चितवणि थारी, और णा दूजा दोर।
ऊभ्याँ ठाढ़ी अरज अरूँ हूँ करताँ करताँ भोर।
मीराँ रे प्रभु हरि अविनासी देस्यूँ प्राण अकोर ॥5॥

म्हारो गोकुल से ब्रजलीला लख जण सुख पावाँ,
ब्रजवणताँ सुखरासी।
णाच्या गावाँ ताल बजावाँ, पावाँ आणंद हाँसी।
गन्द जसोदा पुत्र री, प्रगट्याँ प्रभु अविनासी।
पीताम्बर कट उर बैजणताँ, कर सोहाँ री बाँसी।
मीराँ रे प्रभु गिरधर नागर, दरसण दीजे दासी ॥6॥

Leave A Reply

Your email address will not be published.